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________________ जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन अधिक गहरी डुबकी लगाने की आवश्यकता है। केवल किनारे-किनारे घूमने से उस अमूल्य रत्नराशि के दर्शन नहीं हो सकते । ₹५ आचारांग और दशवैकालिक में श्रमण जीवन से सम्बन्धित आचारविचार का गंभीरता से चिन्तन किया गया है। सूत्रकृतांग, अनुयोगद्वार, प्रज्ञापना, स्थानांग, समवायांग आदि में दार्शनिक विषयों का गहराई से विश्लेषण किया गया है। भगवतीसूत्र जीवन और जगत् का विश्लेषण करने वाला अपूर्व ग्रन्थ है । उपासकदशांग में श्रावक साधना का सुन्दर निरूपण है । अन्तकृत दशांग और अनुत्तरोपपातिक में उन महान आत्माओं के तप जप का वर्णन है, जिन्होंने कठोर साधना से अपने जीवन को तपाया था। प्रश्नव्याकरण में आस्रव और संवर का सजीव चित्रण है। विपाक में पुण्य-पाप के फल का वर्णन है । उत्तराध्ययन में अध्यात्म चिन्तन का स्वर मुखरित है। राजप्रश्नीय में तर्क के द्वारा आत्मा की संसिद्धि की गई है । इस प्रकार आगमों में सर्वत्र प्रेरणाप्रद, जीवनस्पर्शी, अध्यात्म रस से सुस्निग्ध सरस विचारों का प्रवाह प्रवाहित हो रहा है। आगम वाचनाएँ श्रमण भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के पश्चात् आगम-संकलन हेतु पाँच वाचनाएँ हुई हैं । प्रथम वाचना - वीर निर्वाण की द्वितीय शताब्दी ( वीर निर्वाण के १६० वर्ष पश्चात् ) में पाटलिपुत्र में द्वादशवर्षीय भीषण दुष्काल पड़ा जिसके कारण श्रमण संघ छिन्न-भिन्न हो गया। अनेक बहुश्रुतघर श्रमण क्रूर काल के गाल में समा गये । अन्य अनेक विघ्नबाधाओं ने भी यथावस्थित सूत्र परावर्तन में बाधाएँ उपस्थित कीं । आगम ज्ञान की कड़ियाँ लड़ियाँ fafe हो गईं। दुर्भिक्ष समाप्त होने पर विशिष्ट आचार्य, जो उस समय विद्यमान थे, पाटलिपुत्र में एकत्रित हुए । ' ग्यारह अंगों का व्यवस्थित १ जाओ अ तम्मि समए टुक्कालो दोय-दसय वरिसाणि । सम्वो सा-समूहो गओ तओ जलहितीरे ॥ तदुवरमे सो पुणरवि पाडलिपुत्ते समागओ विहिया । संघेण सुयविसया चिंता कि कस्स जं जस्स आसि पासे उद्देस्सज्झयणमाइ तं सव्वं एक्कारयं अंगाई तहेव अत्येति || संघडिउं । ठवियाई ॥ - आचार्य हरिभद्रकृत उपदेश-पव ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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