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जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा
बत्तीस विजय में बत्तीस तीर्थंकर, इस प्रकार जम्बूद्वीप में ३४ तीर्थंकर और उसी प्रकार ६८, ६८ तीर्थंकर क्रमशः घातकीखण्ड और अर्द्ध-पुष्कर में होते हैं। इस प्रकार कुल उत्कृष्ट १७० तीर्थंकर हो सकते हैं किन्तु सभी का क्षेत्र पृथक्-पृथक् होता है। जैन मान्यता की तरह ही अंगुत्तरनिकाय में भी एक क्षेत्र में एक ही चक्रवर्ती और एक ही तथागत बुद्ध होते हैं ऐसी मान्यता है ।
समवायांग' में बताया है कि जहाँ अरिहन्त तीर्थंकर विचरते हैं वहाँ ईति, उपद्रव का भय नहीं रहता, मारी का भय, स्वचक्र, परचक्र का भय नहीं रहता आदि तीर्थंकर के ३४ अतिशय हैं। अंगुत्तरनिकाय में तथागत बुद्ध के ५ अतिशय बताये हैं । वे अर्थज्ञ होते हैं, धर्मज्ञ होते हैं, मर्यादा के ज्ञाता होते हैं, कालज्ञ होते हैं और परिषद् को जानने वाले होते हैं।
दोनों परम्पराओं (जैन और बौद्ध) में चक्रवर्ती का उल्लेख है और उसको बहुजनों के हितकर्ता माना है। स्थानांग और समवायांग में चक्रवर्ती के १४ रत्न बताये गये हैं। तो दीघनिकाय में चक्रवर्ती के ७ रत्नों का उल्लेख है । उनकी उत्पत्ति और विजयगाथा प्रायः एक सदृश है ।
स्थानांग में बुद्ध के तीन प्रकार - ज्ञानबुद्ध दर्शनबुद्ध और चारित्रबुद्ध बताये हैं तथा स्वयंसम्बुद्ध, प्रत्येकबुद्ध और बुद्धबोधित ये तीन प्रकार बताये गये हैं। अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध के तथागतबुद्ध और प्रत्येकबुद्ध ये दो प्रकार बताये गये हैं। "
स्थानांग में स्त्री के स्वभाव का चित्रण करते हुए चतुभंगी बताई गई है। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय में भार्या की सप्तभंगी बताई गई है—
१ समवायांग ३४
२ अंगुत्तरनिकाय ५।१२१
३
स्थानांग ५५८
४ समवायांग १४
५ दीघनिकाय १७
६
७ अंगुत्तरनिकाय २।६।५
द
स्थानांग २७६
६ अंगुत्तरनिकाय ७५६
स्थानांग ३।१५६