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________________ तुलनात्मक अध्ययन ६१७ स्थानांगसूत्र में बताया है कि मध्यलोक में चन्द्र, सूर्य, मणि, ज्योति, अग्नि से प्रकाश होता है । अंगुत्तरनिकाय में आभा, प्रभा, आलोक और प्रज्योत इन प्रत्येक के चार प्रकार बताये गये हैं। वे हैं-चन्द्र, सूर्य, अग्नि, प्रज्ञा । स्थानांग में लोक को चौदह रज्जु प्रमाण कहकर उसमें जीव और अजीव द्रव्यों का सद्भाव बताया है। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय में भी लोक को अनंत कहा है ।" और वह सान्त भी है । तथागत बुद्ध ने यही कहा है कि पाँच कामगुण रूप रसादि यही लोक है और जो मानव पाँच काम गुण का परित्याग करता है वही लोक के अन्त में पहुँचकर वहाँ पर विचरण करता है । स्थानांग में भूकंप के तीन कारण बताये हैं । (१) पृथ्वी के नीचे का धनवात व्याकुल होता है और उससे घनोदधि समुद्र में तूफान आता है । (२) कोई महेश नामक महोरग देव अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन करने के लिए पृथ्वी को चलित करता है। (३) देवासुर संग्राम जब होता है तब भूकंप आता है। अंगुत्तरनिकाय में भूकंप के आठ कारण बताये हैं । ४ (१) पृथ्वी के नीचे की महावायु के प्रकम्पन से उस पर रही हुई पृथ्वी प्रकम्पित होती है; (२) कोई श्रमण-ब्राह्मण अपनी ऋद्धि के बल से पृथ्वी भावना को करता है; (३) जब बोधिसत्व माता के गर्भ में आते हैं; (४) जब बोधिसत्व माता के गर्भ से बाहर आते हैं; (५) जब तथागत अनुत्तर ज्ञान लाभ को प्राप्त करते हैं; (६) जब तथागत धर्मचक्र का प्रवर्तन करते हैं; (७) जब तथागत आयु संस्कार का नाश करते हैं; (८) जब तथागत निर्वाण प्राप्त करते हैं। जैनदृष्टि से जैन आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर ऐसा उल्लेख है कि एक क्षेत्र में एक ही तीर्थंकर या चक्रवर्ती आदि होते हैं। जैसे भरत क्षेत्र में एक तीर्थंकर, ऐरवत क्षेत्र में एक तीर्थंकर, महाविदेह क्षेत्र के १ अंगुत्तरनिकाय ४।१४१, १४५ २ वही ९|३८ ३ ३ स्थानांग ४ अंगुत्तरनिकाय ८७०
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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