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तुलनात्मक अध्ययन
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- स्थानाङ्ग में प्रश्न के छह प्रकार बताये हैं-संशय प्रश्न, मिथ्याभिनिवेश प्रश्न, अनुयोगी प्रश्न, अनुलोम प्रश्न, जानकर किया गया प्रश्न, न जानने से किया गया प्रश्न । अंगुत्तरनिकाय में प्रश्न के सम्बन्ध में चिंतन करते हए बुद्ध ने बताया कि कितने ही प्रश्न ऐसे होते हैं कि जिसके एक अंश का उत्तर देना चाहिए; कितने ही प्रश्न ऐसे हैं जो प्रश्नकर्ता से प्रतिप्रश्न कर उत्तर देना चाहिए; कितने ही प्रश्न ऐसे हैं जिनका उत्तर नहीं देना चाहिए; कितने ही प्रश्न ऐसे हैं जिनका विभाग कर उत्तर देना चाहिए।
स्थानांगसूत्र में छः लेश्याओं का वर्णन है और उन लेश्याओं के भव्य और अभव्य की दृष्टि से संयोगी आदि भंग प्रतिपादित किये गये हैं। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय में पूरणकश्यप द्वारा छ: अभिजातियों का उल्लेख किया गया है, जो रंगों के आधार पर निश्चित की गई हैं, वह इस प्रकार हैं
(१) कृष्णाभिजाति-बकरी, सूअर, पक्षी और पशू-पक्षी पर अपनी आजीविका चलाने वाले मानव कृष्णाभिजाति हैं।
(२) नीलाभिजाति-कंटक वृत्ति भिक्षुक नीलाभिजाति है। बौद्ध भिक्षु तथा अन्य कर्म वाली भिक्षुओं का समूह ।
(३) लोहिताभिजाति-एक शटक निग्रन्थों का समूह । (४) हरिद्राभिजाति-स्वेत वस्त्रधारी या निर्वस्त्र । (५) शुक्लाभिजाति-आजीवक श्रमण-श्रमणियों का समूह ।
(६) परम शुक्लाभिजाति-आजीवक आचार्य, नन्द, वत्स, कृश, सांकृत्य, मस्करी, गोशालक आदि का समूह ।
आनन्द ने गौतम बुद्ध से इन छह अभिजातियों के सम्बन्ध में पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं भी छह अभिजातियों की प्रज्ञापना करता है।
(१) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक (नीच कुल में उत्पन्न) होकर कृष्ण कर्म तथा पापकर्म करता है।
(२) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक होकर धर्म करता है।
१ स्थानांग ५३४ २ अंगुत्तरनिकाय ४२ ३ स्थानांग ५१ ४ अंगुत्तरनिकाय ६।६।३, माग तीसरा, पृ० ३५, ६३-६४