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________________ ६१० जैन बागम साहित्य : मनन और मीमांसा निषद् तैत्तिरीयोपनिषद् और ब्रह्मविद्योपनिषद् में भी प्रतिध्वनित हुई है। आचारांग में ज्ञानियों के शरीर का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि ज्ञानियों के बाहु कृश होते हैं उनका मांस और रक्त पतला एवं न्यून होता है। यही बात अन्य शब्दों में नारदपरिव्राजकोपनिषद् एव संन्यासोपनिषद् में भी कही गई है। पाश्चात्य विचारक शुनिंग ने अपने सम्पादित आचारांग में आचारंग के वाक्यों की तुलना धम्मपद और सुत्तनिपात से की है। मुनि संतबाल जी ने आचारांग की तुलना श्रीमद्गीता के साथ की है। विशेष जिज्ञासुओं को वे ग्रंथ देखने चाहिए। सूत्रकृताङ्ग की तुलना दीघनिकाय व अन्य ग्रंथों से की जा सकती है । स्थानांग और समवायांग सूत्र की रचना शैली अंगुत्तरनिकाय और पुग्गलपञ्ञत्ति की शैली से बहुत कुछ मिलती-जुलती है । स्थानाङ्ग में कहा गया है कि छह स्थान से आत्मा उन्मत्त होती है। अरिहन्त का अवर्णवाद करने से, धर्म का अवर्णवाद करने से, आचार्य, उपाध्याय का अवर्णवाद करने १ नान्तः प्रशम्, न बहिः प्रज्ञम्, नोभयतः प्रज्ञम्, न प्रज्ञानघनम्, न प्रज्ञम्, नाप्रज्ञम्, अदृष्टम्, अव्यवहार्यम्, अग्राह्यम्, अलक्षणम्, अचिन्त्यम्, अव्यपदेश्यम् । --माण्डस्योपनिषद, श्लोक ७ २ यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह । - तैत्तिरीयोपनिषद्, ब्रह्मानन्दवल्लो २, अनुवाक् ४ ३ अच्युतोऽहम् अचिन्त्योऽहम्, अतक्र्योऽहम्, अप्राणोऽहम्, अकायोऽहम्, अशब्दोऽहम्, अरूपोऽहम्, अस्पर्शोऽहम्, अरसोऽहम्, अगन्धोऽहम् अगोत्रोऽहम् अवागहम्, अदृश्योऽहम् अवर्णोऽहम् अश्रुतोऽहम्, अदृष्टोऽहम्। ---ब्रह्मविद्योपनिषद्, श्लोक ८१-११ ४ आगयपन्नाणाणं किसा बाहा भवंति पयणुए य मंस-सोणिए - बाचारांग २/६३ ५. मधुकरीवृत्या आहारमाहरन् कृशो भूत्वा मेदोवृद्धिमकुर्वन् आज्यं रुधिरमिव त्यजेत् । --नारदपरिव्राजकोपनिषद् ७ उपवेश ६ यथालाभमश्नीयात् प्राणसंधारणार्थं यथा मेदोवृद्धिनं जायते । कुशो भूत्वा ग्रामे एकरात्रम् नगरे ........ - संन्यासोपनिषद् १ अध्याय
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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