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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ६०१ चूलिका प्रकीर्णक प्रकृति में सामायिक, स्तव, प्रतिक्रमण, विनयकृतिकर्म, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पाकल्पिक, महाकल्पिक, महापुण्डरीक, निशीथिका और चतुर्दश प्रकीर्णक का उल्लेख है। इसके रचयिता शुभचंद्र हैं जो ज्ञानभूषण के प्रशिष्य थे। वे शब्द, युक्ति और परमागम के ज्ञाता थे और षट्भाषा कवि एवं चक्रवर्ती के नाम से विश्रत थे। गोंड, कलिंग, कर्णाटक, गुर्जर, मालव आदि देशों में उन्होंने वादियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर जैनधर्म की प्रभावना की थी।
कल्लाणालोयणा' इसके रचयिता अजित ब्रह्मचारी हैं। उन्होंने अपने गुरु देवेन्द्र कीति, भट्टारक विद्यानन्दजी के आदेश से हनुमानचरित्र की रचना की थी। इस ग्रंथ की ५४ गाथाएँ हैं।
ढाढसौगाथा इसके रचयिता का नाम ज्ञात नहीं हो सका है। विज्ञों का मन्तव्य है कि वे काष्ठसंघ के कोई आचार्य रहे होंगे । इस ग्रंथ में ३८ गथाएँ हैं।
छेदशास्त्र इसका अपर नाम छेदनवती भी है। इसमें ६० गाथाएं हैं। इस पर एक लघुवृत्ति भी है। इसमें व्रत और समिति सम्बन्धी दोषों की शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का विधान है। इसके रचयिता का नाम अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है।
दिगम्बर परम्परा के जितने भी ग्रंथ हैं वे आचार्यों द्वारा विरचित हैं। क्योंकि उन्होंने मूल आगमों का विच्छेद मान लिया है। जो आचार्यों द्वारा विरचित हैं उन्हें आगमों की तरह प्रामाणिक मानते हैं। चार अनुयोगों की दृष्टि से उन्होंने अपने ग्रंथों का विभाजन इस प्रकार भी किया है
१. प्रथमानुयोग-पद्मपुराण (रविषेण), हरिवंशपुराण (जिनसेन) आदिपुराण (जिनसेन), उत्तरपुराण (गुणभद्र)।
२.करणानुयोग-सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जयधवला, गोम्मटसार जीवकाण्ड और कर्मकांड, लब्धिसार, क्षपणासार, (नेमिचन्द सिद्धान्त चक्रवर्ती द्वारा रचित), पंचसंग्रह, आदि।
१ माणिकचन्द जैन ग्रन्थमाला वि० सं० १९७७ में तत्वानुशासनादि संग्रह में प्रकाशित २ वही १९७८ में प्रकाशित