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________________ ६०० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा थे। धर्मसेन मुनि १४ पूर्वो के अन्तर्गत अग्रायणीय पूर्व के कर्मप्रकृति नामक अधिकार के ज्ञाता थे। उन्होंने ही भूतबलि और पुष्पदंत मुनियों को आगमों के कुछ अंश की शिक्षा दी जिसके फलस्वरूप उन्होंने षट्खण्डागम की रचना की। निजात्माष्टक इसके रचयिता योगीन्द्र देव हैं। इसमें केवल आठ गाथाएँ हैं । इनका समय वि० की १३वीं शताब्दी के आस-पास माना जाता है। छेवपिंड 'छेद' का अर्थ 'प्रायश्चित्त' है। मलहरण, पापनाशन, शुद्धि, पुण्य, पवित्र और पावन ये छेद के पर्यायवाची है। प्रमाद या अभिमान के कारण व्रत, समिति, मूलगुण, उत्तरगुण, तप, गण आदि के सम्बन्ध में स्खलना होने पर प्रायश्चित्त का विधान है। इस ग्रंथ के कर्ता इन्द्रनन्दीयोगेन्द्र है। इसमें ३६२ गाथाएँ हैं। भावत्रिभंगी इसके रचयिता श्रुतमुनि हैं। उनके दीक्षा-प्रदाता गुरु का नाम बालचन्द्र था। इस ग्रन्थ में औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक और पारिणामिक भावों का विवेचन है। इसमें ११६ गाथाएं हैं। यह १५वीं शताब्दी की रचना मानी जाती है। आस्रवत्रिभंगी' ... इस ग्रंथ में मिथ्यात्व, अविरमण, कषाय और योग नाम के आस्रव के भेद-प्रभेदों की चर्चा है । इसके रचयिता श्रुतमुनि माने जाते हैं। सिद्धान्तसार प्रस्तुत ग्रंथ के रचयिता आचार्य जिनचन्द्र हैं। इस ग्रंथ में सिद्धान्तों के सार को प्रस्तुत किया है। इस पर भट्टारक ज्ञानभूषण ने संस्कृत भाषा में भाष्य लिखा है। अंगपण्णत्ती प्रस्तुत ग्रंथ में ग्यारह अंग चौदह पूओं की प्रज्ञप्ति का निरूपण है। १ माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई वि० सं० १९७६ २ प्रकाशक-वही १९७८ ३ प्रकाशक-वाही १९७८
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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