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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५६६ ४२३ गाथाओं के द्वारा इन विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इसके लेखक मायल धवल हैं।
ज्ञानसार इसके कर्ता पद्मसिंह मुनि हैं। इसमें योगी, गुरु, ध्यान आदि के स्वरूप पर ६३ गाथाओं में प्रकाश डाला गया है।
वसुनन्दीश्रावकाचार प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता आचार्य बसूनन्दी हैं जिनका समय विज्ञजन १२वीं शताब्दी पूर्वार्ध मानते हैं। पं० आशाधर ने सागारधर्मामृत की टीका में वसुनन्दी का आदर के साथ स्मरण किया है और उनकी गाथाओं को उडित किया है। इस ग्रन्थ में ५४६ गाथाएँ हैं और श्रावकाचार का विश्लेषण है। सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन का स्वरूप प्रतिपादित करते हुए जीवों के भेद-प्रभेद की चर्चा है। अजीव के वर्णन में स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणुओं का विश्लेषण किया गया है । द्यूत, मद्य, मांस, वेश्या, शिकार, चोरी और परदार-सेवन ये सप्त व्यसन श्रावक के लिए त्याज्य हैं। बारह व्रतों का निरूपण करते हुए दान के फल की विस्तार सहित चर्चा है । पंचमी, रोहिणी, अश्विनि, सौख्य-सम्पत्ति, नन्दीश्वर पंक्ति, विमान पंक्ति आदि व्रतों के करने का भी विधान किया गया है। श्रुतदेविका का भी निरूपण है।
श्रुतस्कन्ध श्रुतस्कन्ध के रचयिता ब्रह्मचारी हेमचन्द्र हैं। वे रामानंदी सैद्धान्तिक के शिष्य थे। इस ग्रंथ में ६४ गाथाएँ हैं। इसमें द्वादशांग श्रुत का परिचय देते हुए द्वादशांग के सकल श्रुत की संख्या बताई है। सामायिक, स्तुति, वन्दन, प्रतिक्रमण, कृति-कर्म, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, कल्प, कल्पाकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निशीथिका प्रभृति की गणना अंगबाह्य श्रुत में की गई है । चतुर्थ आरे में चार वर्षों में साढ़े तीन मास अवशेष रहने पर भगवान महावीर सिद्ध हुए। महावीर निर्वाण के १०० वर्ष के बाद कोई भी श्रुतकेवली नहीं हुआ। आचार्य भद्रबाहु अष्टांगनिमित्त के ज्ञाता
१ वही १९२० में प्रकाशित २ वही १९७३ में प्रकाशित ३ पण्डित हीरालाल जैन द्वारा सम्पादित-भारतीय ज्ञानपीठ, काशी सन् १९५२ ४ माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला बम्बई द्वारा वि० सं० १९७७ में प्रकाशित