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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
तत्त्वसार धर्मतत्त्व का सार बताने के लिए प्रस्तुत ग्रंथ की रचना की गई है। जैसे बिना पांव का मानव मेरु के उच्च शिखर पर नहीं चढ़ सकता, वैसे ही ध्यान के अभाव में कर्म नष्ट नहीं होते। जहाँ तक पर-द्रव्य में चित्त संलग्न रहेगा वहाँ तक भव्य जीव भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। इस ग्रन्थ में ७४ गाथाएँ हैं।
दर्शनसार . प्रस्तुत ग्रन्थ में बौद्ध एवं श्वेताम्बर मत की उत्पत्ति पर चिन्तन किया है और मरीचि को समस्त मिथ्या मतों का प्रवर्तक कहा है। भगवान पाव के तीर्थ में पिहिताश्रव के शिष्य बद्धकीति ने बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया। राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के १३६ वर्ष पश्चात् सौराष्ट्र में बल्लभी नगर में श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति हुई। जिसमें स्त्री-मुक्ति और केवलि-भुक्ति का समर्थन है। इसमें द्राविड़, यापनीय, काष्ठा, माथुर और भिल्लक सम्बन्धी उत्पत्ति का भी वर्णन किया गया है। किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से अनेक स्खलनाएँ प्रस्तुत ग्रंथ में हैं। इसीलिए विज्ञ लोग प्रस्तुत ग्रन्थ को पूर्ण प्रामाणिक नहीं मानते हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में ५१ गाथाएँ है।
भावसंग्रह इसमें दर्शनसार की अनेक गाथाएँ उद्धृत की गई हैं। इसमें सर्वप्रथम जलस्नान से लगने वाले दोषों का वर्णन कर तप और इन्द्रियनिग्रह से आत्मा की विशुद्धि प्रतिपादित की गई है और चौदह गुणस्थानों पर चिन्तन किया गया है।
बृहनयचक्क __ इसका वस्तुतः नाम द्रव्यस्वभावप्रकाश है। इसमें द्रव्य, गुण, पर्याय, ज्ञान, दर्शन और चारित्र, आदि विषयों पर विश्लेषण है। इसमें
१ चलणरहिओ मणुस्सो जह बंधई मेरुसिहरमारुहिउं । ।
तह झाणेण विहीणो इच्छइ कम्मक्खय साहू ॥ २ लहइ ण भव्वो मोक्खं जावइ परदब्ववावडो चित्तो।
उम्मतवं पि कुणतो सुद्धे मावे लहुं लहइ ।। ३ हिन्दी जैन ग्रंप रत्नाकर कार्यालय बम्बई द्वारा वि० सं० १९७४ में प्रकाशित ४ माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रंथमाला द्वारा वि० सं० १९७८ में प्रकाशित