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________________ दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५६३ का भी निरूपण किया गया है। मार्गणा अधिकार में आचार और जीतकल्प का वर्णन है। ग्रंथ में सुकोशल, गजसुकमाल, अग्निकापुत्र, भद्रबाहु, धर्मघोष, अभयघोष, विद्युच्चर, चिलातपुत्र आदि अनेक मुनियों की कथाएँ भी विषय को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त हुई हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ पर समय-समय पर प्राकृत और संस्कृत भाषा में अनेक टीकाएँ लिखी गई हैं। अपराजित सूरि जिनका दूसरा नाम श्री विजयाचार्य सूरि था उन्होंने विजयोदया अथवा आराधना नामक टीका लिखी थी। पं० आशाधरजी ने मूलाआराधनादर्पण नामक टीका का निर्माण किया। तीसरी टीका जो अप्रकाशित है जिसकी हस्तलिखित प्रति भाण्डारकर इन्स्टीट्यूट पूना में है उस टीका का नाम आराधनापञ्जिका है। किन्तु लेखक का नाम अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। चौथी टीका भावार्थदीपिका है । वह भी अप्रकाशित है। उसके लेखक शिवजिक अरुण माने जाते हैं । इससे ग्रन्थ की लोकप्रियता सिद्ध होती है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा (कतिगेयाणुवेक्खा) इसके रचयिता स्वामी कार्तिकेय माने जाते हैं । इस ग्रन्थ-रचना के काल के सम्बन्ध में विद्वानों में एकमत नहीं है। इस ग्रन्थ में ४७६ गाथाएँ हैं। अध्रुव, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म-इन बारह अनुप्रेक्षाओं पर विस्तार से वर्णन है। प्रसंगानुसार सप्त तत्त्व, जीवसमास, मार्गणा, द्वादशव्रत, पात्रों के भेद, दाता के सप्त गुण, दान की श्रेष्ठता, महात्म्य, संलेखना, दश धर्म, सम्यक्त्व के आठ अंग, बारह प्रकार के तप एवं ध्यान के प्रभेदों का निरूपण है। आचार के स्वरूप और आत्म-शुद्धि की प्रक्रिया पर विस्तार से विश्लेषण किया गया है। आचार्य शुभचन्द्र ने इस पर संस्कृत भाषा में टीका का निर्माण किया है। आचार्य नेमिचंद्र और उनका साहित्य आचार्य नेमिचन्द्र देशीय गण के थे। ये गङ्गवंशीय राजा राजमल्ल के प्रधान मंत्री और सेनापति चामुण्डराय के समकालीन थे। उन्होंने आचार्य अभयनन्दी, वीरनन्दी और कनकनन्दी को अपना गुरु माना है। ये सिद्धान्त शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान थे। अतः इन्हें सिद्धान्त चक्रवर्ती भी कहते हैं। इनका समय की ई० सन् ११वीं शती माना जाता है। गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, क्षपणासार, द्रव्यसंग्रह इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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