________________
५६२
जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
कथा एवं आराधना कथाकोश में समन्तभद्र के शिष्य शिवकोटि का निर्देश है किन्तु आदिपुराण के आधार से उन्हें समन्तभद्र का शिष्य नहीं माना जा सकता । कवि हस्तीमल ने विक्रान्त कौरव ग्रन्थ में समन्तभद्र के शिवकोटि और शिवायन ये दो शिष्य लिखे हैं और उन्हीं के अन्वय में जिनसेन को लिखा है । शिवार्य का समय विक्रम की तृतीय शती है । विज्ञ लोग ऐसा भी अनुमान करते हैं कि आचार्य कुन्दकुन्द के कुछ समय के पश्चात् उनका जन्म हुआ हो। वे यापनीय संघ के आचार्य थे।
प्रस्तुत ग्रन्थ में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप इन चार आराधनाओं का निरूपण है । प्रस्तुत ग्रंथ में २१६६ गाथाएँ हैं और ४० अधिकार हैं। इसमें मुनिधर्म या श्रमणधर्म का विश्लेषण मुख्य रूप से किया गया है पर प्रस्तुत ग्रंथ की अनेक मान्यताएं दिगम्बर श्रमणाचार से मेल नहीं खाती। जैसे, रुग्ण श्रमणों के लिए अन्य श्रमणों के द्वारा भोजन-पान लाने का निर्देश। इसी प्रकार श्रमण के मृत शरीर को अरण्य में परित्याग कर आने की विधि । इसमें श्वेताम्बर परम्परा मान्य कल्पव्यवहार, आचारांग और जीतकल्प का भी उल्लेख हुआ है । आवश्यकनियुक्ति, बृहदकल्पभाष्य, प्रभृति श्वेताम्बर ग्रन्थों की अनेक गाथाएं इसमें उद्धृत की गई हैं। बृहदकथाकोश की भूमिका में व प्रवचनसार की भूमिका में डॉ० ए. एन. उपाध्ये ने भगवती आराधना की गाथा संस्तारक, भक्तपरिज्ञा, मरणसमाधि प्रकीर्णक और मूलाचार की गाथाओं से तुलना की है।
ग्रंथ के प्रारम्भ में १७ प्रकार के मरण प्रतिपादित किये गये हैं । उसमें पण्डित पण्डितमरण, पण्डितमरण और बालपण्डितमरण को श्रेष्ठ कहा है। पण्डितमरण में भक्तपरिज्ञामरण को प्रशस्त बताया गया है । लिङ्गाधिकार में आचेलक्य, लोच, देह से ममत्व-त्याग और प्रतिलेखन ये चार श्रमणों के चिह्न बताये गये हैं। अनियतविहार अधिकार में विविध देशों में विचरण करने के गुणों के साथ अनेक प्रकार के रीतिरिवाज, भाषा और शास्त्र आदि में निपुणता प्राप्त करने का विधान है । भावना अधिकार में तपोभावना, श्रुतभावना, सत्य-भावना, एकत्वभावना और धृतिबल भावना का निरूपण किया गया है। संलेखना अधिकार में संलेखना के साथ बाह्य एवं आभ्यन्तर तपों का निरूपण है । आयिकाओं को किस प्रकार संघ में रहना चाहिए उनके नियमोपनियमों