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________________ दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५९१ Estates अधिकार में षडावश्यक पर निक्षेपों की दृष्टि से विवेचन किया गया है। कृति, कर्म और कायोत्सर्ग में लगने वाले दोषों का प्ररूपण किया गया है। अनगार भावना अधिकार में बताया है कि लिङ्ग, व्रत, वसति, विहार, भिक्षा, ज्ञान, शरीर-संस्कार त्याग, वाक्य, तप और ध्यान सम्बन्धी जो निर्दोष आचरण करते हैं वे ही मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। समयसार अधिकार में चारित्र को शास्त्र का सार कहा है। अनुप्रेक्षा अधिकार में भावनाओं का वर्णन है। पर्याप्ति अधिकार में पर्याप्तियों पर चिन्तन है। पर्याप्ति के संज्ञा, लक्षण, स्वामित्व, संख्या परिमाण, निवृत्ति और स्थितिकाल ये छह भेद हैं । शीलगुण अधिकार में शील के अठारह हजार भेदों का वर्णन है । यह ग्रन्थ श्रमणाचार को समझने के लिए बहुत ही उपयोगी है। डॉ० ए. एम. घाटगे ने इन्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टर्ली १९३५ में अपने दशवेकालिक नियुक्ति नामक लेख में मूलाचार और दशवैकालिक निति की गाथाओं का मिलान किया है। उदाहरण के रूप में देखिए कहं चरे कहं चिट्टे, कहमासे कहूं सये । कहं भुंजतो भासतो, पावं कम्मं न बंधइ ॥ कथं चरे, कथं चिट्ठे, कधमासे, कथं सये । कथं भुंजेज्ज भासेज्ज कधं पावं ण बज्झादि । भगवती आराधना दशवेकालिकसूत्र (४.६) इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य शिवार्य हैं । ग्रंथ के अन्त में जो प्रशस्ति है उससे यह अवगत होता है कि आर्य जिननंदिगणि, आर्य सर्वगुप्त और आर्य शिवनन्दिगणि के चरणारविन्दों में सम्यक् प्रकार से सूत्र और उसका अर्थ समझकर तथा पूर्वाचार्यों की रचना को उपजीव्य बनाकर 'पाणीतल भोजी' शिवार्य ने प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की। आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में शिवकोटि का उल्लेख किया है। राजा बलि १ अज्जजिणणंदिगणि अज्जमित्तणंदणं । अवगमियपायमूले सम्मं सुतं च अत्यं च ॥ २१६१॥ वायरियणिबद्धा उपजीविता इमा ससत्तीए । वाराहणा सिवज्जेण पाणिदलमोइणा रइदा ॥२१६२ ॥
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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