SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५८५ चारित्र के दो भेद किये गये हैं। नि:शंकित, निकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि, उपगृहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना ये सम्यक्त्व के आठ गुण हैं। उनसे पूर्ण विशुद्ध सम्यग्दर्शन का ज्ञान के साथ आचरण करना सम्यक्त्वचरण चारित्र है, सम्यग्दर्शन से जीव द्रव्य पर्यायों को देखकर श्रद्धा करता है, ज्ञान से उन्हें जानता है और चारित्र से अपने दोषों का परिहार करता है। संयमचरण चारित्र, सागार और अनगार रूप से दो प्रकार का है। दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्त, रात्रिभक्त, ब्रह्म, आरम्भ, परिग्रह, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग इन प्रतिमाओं का आचरण करने वाला सागारी चारित्र है। पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत श्रावक के इन बारह व्रतों पर विवेचन कर सागार संयमचरण को पूर्ण किया गया है। अनगार संयमचरण पर चिन्तन करते हए मनोज्ञ, अमनोज्ञ, सचित्त और अचित्त, राग-द्वेष के परिहार की दृष्टि से इन्द्रियों का संवरण, महाव्रत, समिति, गुप्ति इनको अनगार संयमचरण कहा है। पंच व्रतों की पृथकपृथक भावनाओं का भी निर्देश है। इस ग्रन्थ में मूल ४४ गाथाएँ हैं और इस पर श्रुतसागर ने टीका का निर्माण किया है। बोधप्राभृत प्रस्तुत ग्रन्थ में विश्व के समस्त जीवों के प्रबोधनार्थ षटकाय के जीवों के हितार्थ इसमें ग्यारह बातों पर प्रकाश डाला गया है। भावप्राभृत प्रस्तुत ग्रंथ में श्रमण की पहचान भाव से बताई गई है, द्रव्यलिङ्ग से नहीं। गुण और दोष दोनों का मूल स्रोत भाव है। जो बाह्य परिग्रह का परित्याग किया जाता है उसका संलक्ष्य भावशुद्धि है। अभ्यन्तर परिग्रह मिथ्यात्व आदि हैं जिनके बिना त्याग किये, बाह्य परिग्रह का त्याग फलप्रद नहीं होता। आचार्य ने इस बात पर बल दिया है कि नग्नत्व आदि मुक्ति का मूल कारण नहीं है क्योंकि नारकी व तिर्यञ्च के जीव तो नग्न ही रहते हैं। मिथ्यात्व आदि दोषों से रहित होना ही १ पूर्वोक्त संस्था से प्रकाशित २ भावप्राभूत-षट्प्राभूतादि संग्रह में श्रुतसागर रचित टीका के साथ; भारतीय दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला बम्बई से प्रकाशित ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy