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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५८१ गुण और पर्याय, प्राण, शुभ व अशुभ उपयोग, जीव का लक्षण, जीव और पुद्गल का सम्बन्ध, निश्चय और व्यवहार का अवरोध तथा शुद्धात्मा पर चिन्तन किया गया है।
चारित्र अधिकार में श्रामण्य के चिन्ह, छेदोपस्थापक श्रमण, छेद का स्वरूप, युक्त आहार, उत्सर्ग एवं अपवाद मार्ग, आगम ज्ञान का लक्षण, मोक्ष-तत्त्व प्रभृति का प्ररूपण किया गया है।
आचार्य अमृतचन्द्र की टीका के अनुसार प्रवचनसार की गाथा संख्या २७५ है । जबकि जयसेन की टीका के अनुसार ३१७ गाथाएँ हैं । अधिक गाथाओं को विषय की दृष्टि से तीन भागों में विभक्त कर सकते हैंनमस्कारात्मक, विवेचन विस्तार विषयक, अन्य विषय विज्ञापनात्मक । इन तीनों विभागों में दो विभागों की गाथाएँ तटस्थ हैं। किन्तु तृतीय विभाग की चौदह गाथाओं में श्रमणों के लिए वस्त्र, पात्र एवं स्त्रियों के लिए मुक्ति का निषेध किया गया है। ये गाथाएँ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विरोध में लिखी गई हैं। आचार्य अमृतचन्द्र ने इन गाथाओं का प्रयोग अपनी टीका में नहीं किया है। इस सम्बन्ध में डॉ० ए० एन० उपाध्ये का अभिमत है कि अमृत चन्द्र इतने आध्यात्मिक व्यक्ति थे कि वे साम्प्रदायिक वाद-विवाद में पड़ना नहीं चाहते थे। अतः वे इस बात की इच्छा रखते थे कि उनकी टीका संक्षिप्त एवं तीक्ष्ण साम्प्रदायिक आक्रमणों का लोप करती हुई कुन्दकुन्द के प्रति उदात्त उद्गारों के साथ सभी संप्रदायों को स्वीकृत हो।
समयसार यह ग्रन्थ आचार्य कुन्दकुन्द का सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक ग्रन्थ है। 'समय' शब्द के समस्त पदार्थ और आत्मा ये दो अर्थ हैं। जिस ग्रंथ में समस्त पदार्थों का या आत्मा का सार वणित हो वह 'समयसार' है। इसमें भेद-विज्ञान का निरूपण हुआ है। अनेक पदार्थों को स्व-स्व लक्षणों से अलगअलग भेद कर देना और उनमें से उपादेय पदार्थ को लक्षित कर उससे अन्य पदार्थों को उपेक्षित कर देने का नाम भेद-विज्ञान है। प्रस्तुत ग्रंथ दस
१ (क) समयसार-मारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशन संस्था समिति, काशी
(प्रकाशन वर्ष ई० सन् १९१५) (ख) प्रस्तुत प्रन्थ के अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं। इसका अंग्रेजी टीका
सहित संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ काशी से प्रकाशित हुआ है।