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________________ ५८. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा अपने गुरु का नाम भद्रबाहु लिखा है। विज्ञों की यह धारणा है कि वे भद्रबाह के साक्षात् शिष्य नहीं थे किन्तु परम्परागत शिष्य रहे होंगे। बोधपाहुड के संस्कृत टीकाकार श्री श्रुतसागर सूरि ने 'भद्दबासीसेण' विशाखाचार्य कुन्दकुन्द को उनका परम्परागत शिष्य स्वीकार किया है। आचार्य कुन्दकुन्द के समय के सम्बन्ध में विद्वानों में एकमत नहीं है। डा० ए०एन० उपाध्ये ने 'प्रवचनसार' की प्रस्तावना में, श्री जूगलकिशोर मुख्त्यार ने समन्तभद्र की प्रस्तावना में, डॉ. ए. चक्रवर्ती ने पंचास्तिकाय की प्रस्तावना में, पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने कुन्दकुन्द प्राभृत संग्रह में विस्तार से चर्चा की है। विशेष जिज्ञासुओं को उन ग्रन्थों को देखना चाहिए। सामान्य मत यह है कि वे ईसवी सन की प्रथम या द्वितीय शताब्दी में हुए हैं। कुन्दकुन्द की सभी रचनाएँ शौरसेनी प्राकृत में हैं। उनकी कूल २३ रचनाएँ प्राप्त होती हैं। उनमें से प्रवचनसार, समयसार और पंचास्तिकाय ये तीन ग्रंथ विशाल हैं और दिगम्बर परम्परा में अध्यात्मत्रयी के नाम से प्रसिद्ध हैं। प्रवचनसार प्रस्तुत ग्रंथ में तीन अधिकार हैं-ज्ञान, ज्ञेय और चारित्र । ज्ञानाधिकार में आत्मा और ज्ञान का एकत्व और अन्यत्व, सर्वज्ञ की संसिद्धि, इन्द्रिय और अतीन्द्रिय सुख, शुभ, अशुभ, शुद्धोपयोग एवं मोह क्षय आदि का निरूपण है। ज्ञेयाधिकार में द्रव्य, गुण, पर्याय का स्वरूप, सप्तभंगी, ज्ञान, कर्म और कर्मफल चेतना का स्वरूप, मूर्त एवं अमूर्त द्रव्यों के गुण, काल आदि के १ सद्दविआरो हुओ भासासुत्तेसु जं जिणे कहियं । सो तह कहियं णाणं सीसेण य मद्दबाहुस्स ॥ बारस बंगवियाणं चउदस पुव्वंग विजल वित्थरणं । सुयणाणि मद्दबाहू गमयगुरु भयवओ जयओ ।। __-बोषपाहुर, गाथा ६१-६२ २ भद्रबाहुशिष्येण अहंबलिगुप्तिगप्तापरनामद्वयेन विशाखाचार्यनाम्ना दापूर्व धारिणामेकादशाचार्याणां मध्ये प्रथमेन ज्ञातम् । -ससागर सूरि ३ प्रवचनसार वृत्ति सहित: प्रकाशक----परमश्रुत प्रमावक मंडल, बम्बई (प्रकाशन वर्ष वि० सं० १९६६)
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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