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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५७६
उत्सेध, वैमानिक के आयुबन्ध के योग्य परिणाम, लोकान्तिक देवों का स्वरूप, गुणस्थान आदि का स्वरूप, सम्यक्त्व ग्रहण के कारण, आगति, अवधिज्ञान का विषय, देवों की संख्या, शक्ति, योनि आदि २१ अधिकारों का वर्णन है । (e) सिद्धलोक
इसमें सिद्धों के निवास क्षत्र, संख्या, अवगाहना, सुख और सिद्धत्व के योग्य भावों का विवेचन है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का सुव्यवस्थित विवेचन है । ग्रन्थ में मुलाचार, लोक विभाग और लोक विनिश्चय ग्रन्थों के पाठान्तरों का भी उल्लेख है । इस ग्रन्थ का वर्ण्य विषय श्वेताम्बर आगम सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के विषय से मिलता-जुलता है।
डॉ० हीरालाल जैन ने तिलोयपण्णत्ति के विषय आदि की श्वेताम्बराचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण के बृहक्षेत्रसमास, बृहदसंग्रहणी तथा नेमिचन्द्र के प्रवचनसारोद्वार आदि के साथ तुलना की है। लोकविभाग, मूलाचार, भगवती आराधना, पञ्चास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार आदि ग्रन्थों की बहुत सी गाथाएँ तिलोयपण्णत्ति में मिलती-जुलती हैं।
आचार्य कुन्दकुन्द और उनके ग्रन्थ
दिगम्बर जैन आचार्यों में आचार्य कुन्दकुन्द का नाम शीर्षस्थ है। उनकी जन्मस्थली कुडकुन्डपुर थी । श्रवणबेलगोला के कितने ही शिलालेखों में उनका एक नाम कोन्डकुन्द भी प्राप्त होता है। षटप्राभृत के टीकाकार श्रुतसागर ने पद्मनन्दि, कुन्दकुन्दाचार्य, वक्रग्रीवाचार्य, एलाचार्य और गृपच्छात्रायें इन पांच नामों का उल्लेख किया है। नन्दीसेन की पट्टावली में नन्दीसिंध से सम्बन्धित ये पाँच नाम प्राप्त होते हैं। पंचास्तिकाय तात्पर्यवृत्ति में जयसेनाचार्य ने आचार्य कुन्दकुन्द के गुरु का नाम कुमार नन्दीसेनदेव लिखा है और नन्दीसेन की पट्टावली में उन्हें जिनचन्द्रसेन का शिष्य बताया है। स्वयं कुन्दकुन्द आचार्य ने बोधपाहुड से अन्त में
१ प्रस्तुत ग्रन्थ तिलोयपण्णत्त भाग १-३ । प्रकाशक - जैन संस्कृति संरक्षक संघ 1. शोलापुर, महाराष्ट्र - पहला भाग १६४३ ; द्वितीय भाग १६५१ प्रकाशन वर्ष ) ।