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५७६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा काल, चतुर्दश पूर्वधर आदि का अस्तित्व, श्रुत के विच्छेद की चर्चा की गई है। उसके बाद शक, गुप्त, चतुर्मुख, पालक, विजयवंश, मुरुण्डवंश, पुष्यमित्र, वसुमित्र, अग्निमित्र, गंधर्व, नरवाहन भृत्यांध्र, पुनःगुप्त, इन्द्रसुत, चतुर्मुख, कल्की, उनके राज्य काल आदि की चर्चा है। तत्पश्चात् अति दुषमा काल में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन का वर्णन है।
भरतक्षेत्र के वर्णन के पश्चात् हिमवान पर्वत, हैमवत क्षेत्र, महाहिमवान पर्वत, हरीवर्ष और निशद पर्वत का वर्णन करके महाविदेह क्षेत्र और उसके मध्य में स्थित मेरु पर्वत का वर्णन किया गया है।
इसी तरह जम्बूद्वीप के दक्षिण दिशागत क्षेत्र, पर्वत आदि का कथन है। इसी तरह उत्तर दिशा के क्षेत्र, पर्वत आदि का निरूपण है । लवण समुद्र और धातकीखण्ड द्वीप के मानवों में गुणस्थान आदि का विवेचन किया गया है। (५) तिर्यक्लोक
प्रस्तुत महाधिकार में स्थावर क्षेत्र, उसके मध्य में तिर्यक् क्षेत्र, नाम निर्देशपूर्वक द्वीप समुद्र, उनकी संख्या एवं विन्यास, क्षेत्रफल, तिर्यञ्चों के भेद, संख्या, आयु, आयु के बंधयोग्य परिणाम, योनि, सुख-दुःख, गुणस्थान, सम्यक्त्व ग्रहण करने के कारण, गति, आगति, अल्पबहुत्व आदि १६ अधिकारों का विवेचन है। (६) व्यन्तरलोक
भावनलोक में भवनवासी देवों का जिस प्रकार विवेचन किया गया है उसी प्रकार यहाँ व्यन्तर देवों की प्ररूपणा की गई है। (७) ज्योतिर्लोक
इस अधिकार में ज्योतिषी देवों के भेद, संख्या, विन्यास, परिमाण, चर ज्योतिषी देवों का संचार, अचर ज्योतिषियों का स्वरूप, आयु, आहार, उच्छ्वास, अवधिज्ञान की शक्ति, एक समय में जन्म-मरण, आयु के बन्धयोग्य परिणाम, सम्यक्त्व ग्रहण के कारण, गुणस्थान आदि १७ अधिकारों से वर्णन है। । (८) सुरलोक . . . :
इसमें वैमानिक देवों के निवास क्षेत्र, विन्यास, भेद, नाम, सीमा, संख्या, इन्द्रविभूति, आयु, जन्म-मरण का अन्तर, आहार, उच्छ्वास,