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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण
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उनमें गुणस्थान आदि, वहाँ पर पैदा होने वाले जीवों की सम्भावना, जन्म और मरण का अन्तर, एक समय में उत्पन्न होने वाले या मरने वाले नारकियों की संख्या, नरकों से आगमन, नारक आयु के बन्धयोग्य परिणाम, जन्म-भूमियाँ, नरकों में प्राप्त होने वाला दुःख, और सम्यक्दर्शन ग्रहण करने के कारण, इन सभी पर विचार किया गया है। (३) भावनलोक
इसमें २४ अधिकारों के माध्यम से भवनवासी देवों के निवास, उनके भेद, चिह्न, भवनों की संख्या, इन्द्रों की संख्या व उनके नाम, दक्षिण व उत्तर के इन्द्र, प्रत्येक के भवनों का प्रमाण, अल्प ऋद्धि वाले भवनवासियों के भवनों का विस्तार, भवन वेदी, कूट, जिन भवन, प्रासाद, इन्द्रविभूति, भवनवासी देवों की संख्या, आयु प्रमाण, शरीर की ऊँचाई, अवधिज्ञान का प्रमाण, गुणस्थान, एक समय में समुत्पन्न होने वाले या मरने वालों की संख्या, आगति, भवनवासियों के आयु के बन्धयोग्य परिणाम, सम्यक्त्व ग्रहण करने के कारण --- इन सबकी चर्चा की गई है। (४) नरलोक
प्रस्तुत महाधिकार में मनुष्यलोक का निर्देश जम्बूद्वीप, लवण समुद्र, घातकीखण्ड द्वीप, कालोद समुद्र, पुष्करार्ध द्वीप इन अढाई द्वीपों में रहने वाले मानवों के भेद, उनकी संख्या, अल्पबहुत्व, अनेक भेदयुक्त गुणस्थान आदि का संक्रमण, मानव आयु के बन्धयोग्य भाव, योनि, प्रमाण, सुख-दुःख, सम्यक्त्व ग्रहण करने के कारण, मुक्ति प्राप्त करने वालों का प्रमाण इन सोलह अधिकारों की चर्चा है ।
इस महाधिकार का यह वर्णन बहुत ही विस्तृत है। जम्बूद्वीप के वर्णन में भरतक्षेत्र का विस्तार से निरूपण किया गया है। उसमें आर्य खण्ड, अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी आदि काल चक्र का वर्णन करते हुए भोगभूमियों की व्यवस्था, २४ तीर्थंकर १२ चक्रवर्ती, ६ बलदेव, ६ नारायण, 2 प्रतिनारायण के नाम व ११ रुद्रों के नामों का भी उल्लेख है। तीर्थंकरों के वर्णन में उनकी जन्मस्थली आदि अनेक ज्ञातव्य विषयों पर प्रकाश डाला गया है । चक्रवर्तियों के आयु का निरूपण करते हुए नौ नारदों का भी निर्देश किया है। तीर्थंकर आदि नियमतः मुक्ति को प्राप्त करते हैं, यह सूचना भी की गई है।
दुषमा काल के वर्णन में गौतम आदि केवलियों के धर्म-प्रवर्तन