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________________ ५७६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा स्वर्गस्थ हो गये। उनकी इस अपूर्ण टीका की पूर्ति उनके शिष्य आचार्य जिनसेन ने की। जो शक सं० ७६९ (वि० सं० ८९४ ) में पूर्ण हुई । ' प्रस्तुत ग्रन्थ कई अनुभागों में विभक्त है किन्तु इन सभी अनुभागों में कर्म की विभिन्न स्थिति का बहुत ही सुन्दर विश्लेषण व निर्देश हुआ है। कर्म किस स्थिति में किस कारण से आत्मा के साथ सम्बन्धित होते हैं। और उस सम्बन्ध का आत्मा के साथ किस प्रकार सम्मिश्रण होता है, किस प्रकार उनमें फलदानत्व घटित होता है, और कितने समय तक कर्म आत्मा के साथ लगे रहते हैं इसका विस्तृत और स्पष्ट विवेचन इस ग्रन्थ में हुआ है । तिलोयपण्णी (त्रिलोक प्रज्ञप्ति) तिलोयपण्णत्ती के रचयिता आचार्य यतिवृषभ हैं। ये विक्रम सं० ५३० ६६६ के मध्य में हुए होंगे ऐसा विज्ञों का मन्तव्य है । इसमें सामान्यलोक, नारकलोक, भावनलोक, नरलोक, तिर्यग्लोक, व्यन्तरलोक, ज्योतिर्लोक, कल्पवासिलोक और सिद्धलोक, ये नौ अधिकार हैं। जिसमें तीनों लोक सम्बन्धी महत्वपूर्ण विशेष बातों की प्ररूपणा की गई है। (१) सामान्यलोक सर्वप्रथम मंगल स्वरूप गुरुओं की स्थिति, शास्त्र सम्बन्धी मंगल, कारण, हेतु, प्रमाण, नाम और कर्ता इन छहों पर विवेचन किया है। उसके पश्चात् लोक पर चिन्तन करते हुए पल्योपम, सागरोपम, सूचि-अंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगश्रेणि, जगप्रतर और लोक इन आठ प्रमाण भेदों का वर्णन है । अन्त में लोक के आधारभूत तीन वातवलयों के आकार व मोटाई आदि का वर्णन प्रमाण प्रस्तुत करते हुए इस महाधिकार को पूर्ण किया गया है । (२) नारकलोक प्रस्तुत महाधिकार के पन्द्रह अधिकारों में नारकियों के निवास क्षेत्र, उनकी संख्या, आयु का प्रमाण, शरीर की ऊँचाई, अवधिज्ञान का प्रमाण, १ (क) प्रस्तुत ग्रन्थ चूर्णि और जयधवला टीका के साथ ग्यारह भागों में दिगम्बर जैन संघ, मथुरा (प्रकाशन १९४४ ) से प्रकाशित हुआ है । (ख) चूर्णि व सूत्र सहित वीर शासन संघ कलकत्ता से प्रकाशित हुआ है। ( प्रकाशन १९५५)
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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