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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
७ कषाय
६ कषाय ८ लेश्या
१० लेश्या सम्यक्त्व
१२ सम्यक्त्व १० ज्ञान
७ ज्ञान ११ दर्शन
१ दर्शन १२ संयम
८ संयम १३ उपयोग १४ आहार
१४ आहारक १५ भाषक १६ परित्त १७ पर्याप्त १८ सूक्ष्म १९ संज्ञी
१३ संज्ञी २० भव
११ भव्य २१ अस्तिकाय २२ चरिम २३ जीव २४ क्षेत्र २५ बंध २६ पुद्गल
जैसे प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्यता नामक तृतीय पद में गति प्रभृति मार्गणास्थानों की दृष्टि से छब्बीस द्वारों के जीवों के अल्प-बहत्व पर चिन्तन करने के पश्चात् प्रस्तुत प्रकरण के अन्त में 'अह भंते ! सव्वजीवप्पबहं महादंडयं बत्तइस्सामि" कहा है वैसे ही षट्खण्डागम में भी चौदह गुणस्थानों में गति आदि चौदह मार्गणास्थानों द्वारा जीवों के अल्पबहुत्व पर चिन्तन करने के पश्चात् प्रस्तुत प्रकरण के अन्त में भी महादण्डक का उल्लेख किया गया है।
प्रज्ञापना में जीव को केन्द्र मानकर निरूपण किया गया है तो षट्खण्डागम में कर्म को केन्द्र मानकर विश्लेषण किया गया है। किन्तु खुद्दाबंध
१ षटखण्डागम, पुस्तक ७, पृ०७४५