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________________ दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५७१ दोनों में अवगाहना, अन्तर आदि अनेक विषयों का समान रूप से प्रतिपादन किया गया है। प्रज्ञापना में छत्तीस पद हैं। उनमें से तेईसवें, सत्ताईसवें और पेंतीसर्वे पद में क्रमशः कर्मप्रकृतिपद, कर्मबन्धपद, कर्मबन्धवेदपद, कर्मवेदबन्धपद, कर्मवेदवेदकपद और वेदनापद ये छह नाम हैं । षट्खण्डागम के टीकाकार ने षट्खण्डागम के जीवस्थान, क्षुद्रकबन्ध, बन्धस्वामित्व, वेदना, वर्गणा और महाबन्ध ये छह नाम दिये हैं। प्रज्ञापना के उपयुक्त पदों में जिन तथ्यों की चर्चाएँ की गई हैं उन्हीं तथ्यों की चर्चाएँ षट्खण्डागम में भी की गई हैं। दोनों ही आगमों में गति आदि मार्गणास्थानों की दृष्टि से जीवों के अल्पबहत्व पर चिन्तन किया गया है। प्रज्ञापना में अल्पबहुत्व की मार्गणाओं के छब्बीस द्वार हैं जिनमें जीव और अजीव इन दोनों पर विचार किया गया है तो षट्खण्डागम में चौदह गुणस्थानों से सम्बन्धित गति आदि मार्गणास्थानों को दृष्टि में रखते हुए जीवों के अल्पबहुत्व पर विचार किया है। प्रज्ञापना में अल्पबहुत्व की मार्गणाओं के छब्बीस द्वार हैं तो षट्खण्डागम में चौदह हैं किन्तु दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि षटखण्डागम में वर्णित चौदह मार्गणाद्वार प्रज्ञापना में वर्णित छब्बीस द्वारों में चौदह के साथ पूर्ण रूप से मिलते हैं। जैसा कि अधोलिखित तालिका से स्पष्ट है :प्रज्ञापना षट् खण्डागम १ दिशा २ गति १ गति ३ इन्द्रिय २ इन्द्रिय ४ काय ३ काय ५ योग ४ योग ५ वेद दिसि गति इंदिय काए जोगे वेदे कसाया लेस्सा य । सम्मत णाण दसण संजम "उवओग आहारे । मासग परित्त पज्जत्त सुहम सण्णी भवत्थिए चरिमे। जीवे य खेत्त बधे पोग्गल महदंडए चेव ।। पम्नवणा० ३ बहुवत्तवपर्य सूत्र २१२ गा १८०, ११ २ षटखण्डागम, पुस्तक ७, पृ० ५२०
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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