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५७० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा किया जाय तो सहज ही परिज्ञात होगा कि इन दोनों आगमों में पर्याप्त साम्य है। प्रज्ञापना के रचयिता दशपूर्वधर आर्य श्यामाचार्य हैं तो षट्खण्डागम के रचयिता पुष्पदन्त और भूतबलि हैं। ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सिद्ध है कि पुष्पदन्त और भूतबलि से पहले श्यामाचार्य हुए थे अत: प्रज्ञापना षट्खण्डागम से बहुत पहले की रचना है। प्रज्ञापना श्वेताम्बर परम्परा मान्य आगम ग्रंथ है तो षदखण्डागम दिगम्बर परम्परा मान्य आगम ग्रंथ है।
दोनों ही आगमों का मूल स्रोत दृष्टिवाद है। दोनों ही आगमों का विषय जीव और कर्म का सैद्धान्तिक दृष्टि से विश्लेषण करना है। दोनों में अल्पबहुत्व का जो वर्णन है उसमें अत्यधिक समानता है जिसे महादण्डक कहा गया है। दोनों में गति-आगति प्रकरण में तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव एवं वासुदेव के पदों की प्राप्ति के उल्लेख की समानता वस्तूतः प्रेक्षणीय है।
१ (क) अज्मयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिट्ठीवायणीसंद । जह वणियं भगवया, अहमवि तह वष्णइस्सामि ॥
-प्रज्ञापमासूत्र, पृ० १, गा० ३ (ख) अग्रायणीयपूर्वस्थित पंचमवस्तुगत चतुर्थमहाकर्मप्राभूतकाः सूरिधरसेन
नामाभूत ॥१०॥ कर्मप्रकृतिप्रामृतमुपसंहायव षड्मिरिह खण्डेः ॥१३४।।
-शुतावतार-बन्धनन्बीहत (ग) भूतबलि-मयवदा जिणवालिद पासे दिट्ठ विसदिसुत्तेण अप्पाउओत्ति
अवगजिणवालिदेण महाकम्मपयडिपाहुउस्स बोच्छेदो होहदि त्ति समुप्पणबुद्धिणा पुणो दब्वपमाणाणुगममादि काऊण गंधरयणा कदा ।
-षट्खण्डागम, जीवट्ठाण, भाग १, पृ०७१ २ अह भंते ! सव्वजीवप्पबहुँ महादंडयं बत्तइस्सामि सम्वत्यो वा गम्भवक्कंतिया
मणुस्सा......."सजोगी विसेसाहिया ६६, संसारत्था बिसेसाहिया ६७, सब्व जीवा विसेसाहिया ।
-प्रमापनासूत्र ३३४ तुलना करेंएत्तो सम्बजीवेसु महादंडओ कादम्वो भवदि । सम्वत्थो वा मणुस्सपज्जत्ता गबमोवक्कंतिया....."णिगोदजीवा विसेसाहिया
-षट्खण्डागम, पुस्तक ७ प्रज्ञापनासूत्र, सू०१४४४ से ६५ तुलना करें--- षट्खण्डागम, पुस्तक ६, सू० ११६-२२०