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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५६७ जीव किस गुणस्थान में है ? या किन जीवों में कितने गुणस्थान हो सकते हैं? किन-किन गुणस्थान वाले जीवों की कितनी संख्या है? उनकी अवस्थितियां क्या हैं ? वे कहाँ तक जा सकती हैं ? किस गुणस्थान का कितना काल है ? एक गुणस्थान को छोड़कर पुन: उस गुणस्थान को प्राप्त करने में कितना समय लगता है ? किस गुणस्थान में औदयिक आदि भाव कितने हो सकते हैं ? कौन गुणस्थानवी जीव किस गुणस्थानवर्ती जीव से कम या अधिक हैं ? इन सभी प्रश्नों पर चिन्तन प्रथमतः गुणस्थान के आश्रय से किया है । इसके बाद उन सभी बातों पर चिन्तन गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं के आधार से भी किया गया है। विविध प्रकार को कर्मप्रकृतियों का संकेत करते हुए उनकी अलग-अलग स्थिति और उदय में आने योग्य काल की विचारणा करते हुए किस पर्याय में कौनसे गुण कितनी संख्या में प्राप्त हो सकते हैं, आयु परिपूर्ण होने पर शरीर का परित्याग कर कौन जीव कहाँ पर उत्पन्न हो सकता है-इस पर चिन्तन किया है। साथ ही कौन जीव किस प्रकार से सम्यकदर्शन व चारित्र को प्राप्त कर सकता है-इस पर भी विवेचन किया है। (२) क्षुद्रकबन्ध
जीवस्थान खण्ड में जीवों पर गुणस्थान व मार्गणा के आधार से चिन्तन किया गया है । वह वहाँ पर कुछ विशेषताओं के साथ गुणस्थान निरपेक्ष केवल मार्गणाओं के आधार से (१) एक जीव की दृष्टि से स्वामित्व (२) एक जीव की दृष्टि से काल (३) एक जीव की दृष्टि से अन्तर (४) नानाजीवों की दृष्टि से भंगविचय (५) द्रव्य प्रमाणानुगम (६) क्षेत्रानुगम (७) स्पर्शनानुगम (5) विविध जीवों की अपेक्षा काल () विविध जीवों की अपेक्षा अन्तर (१०) भागाभागानुगम (११) अल्प बहुत्वानुगम इन ग्यारह अनुयोगों द्वारा चिन्तन किया गया है । बन्ध का विस्तार से निरूपण छठे खण्ड महाबन्ध में किया गया है। अत: इसे क्षुद्रकबन्ध कहा है।
१ प्रस्तुत खण्ड शीतावराय लक्ष्मीचंद जैन साहित्योद्धारक फंड अमरावती से छः
जिल्दों में प्रकाशित हुआ है। २ वही संस्था, जिल्द सातवा ।