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fदगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५६५
श्वेताम्बर आगम साहित्य अर्द्धमागधी भाषा में लिखा गया है जब fs दिगम्बर प्राचीन साहित्य शौरसेनी भाषा में लिखा गया है।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार आगमों के अंगबाह्य और अंगप्रविष्ट, ये दो भेद हैं। अंगबाह्य के सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवेकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निसिद्धिका ये चौदह प्रकार हैं।"
अंगप्रविष्ट के आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाक और दृष्टिवाद ये बारह प्रकार हैं। दृष्टिवाद के परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वंगत और चूलिका ये पाँच अधिकार हैं। परिकर्म के चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति ये पाँच प्रकार हैं। सूत्र अधिकार में जीव त्रैराशिकवाद, नियतिवाद, विज्ञानवाद, शब्दवाद, प्रधानवाद, द्रव्यवाद और पुरुषवाद का विश्लेषण है। प्रथमानुयोग, पौराणिक आख्यानक है। पूर्वंगत अधिकार में उत्पाद, व्यय और धौव्य का कथन है तथा वे संख्या की दृष्टि से चौदह हैं। चूलिका के जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता-ये पाँच प्रकार हैं। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि श्वेताम्बर दृष्टि से चूलिकाओं का पूर्वो में समावेश हो गया है किन्तु दिगम्बर दृष्टि से उनका पूर्वो के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है ।
दिगम्बर दृष्टि से द्वादशाङ्ग का विच्छेद हो गया केवल दृष्टिवाद का कुछ अंश अवशेष रहा है। जो षट्खण्डागम के रूप में आज भी विद्यमान है ।
चट्खण्डागम
यह आचार्य पुष्पदन्त व भूतबलि की महत्त्वपूर्ण रचना है। दिगम्बर
१ (क) षट्खण्डागम, भाग १, पृ० ३६
(ख) सर्वार्थसिद्धि पूज्यपाद, १-२०
(ग) तत्त्वार्थराजवात्तिक : अकलंक, १-२०
(घ) गोम्मटसार जीवकाण्ड : नेमिचन्द्र, पृ० १३४
प्रस्तुत अंगबाह्य विभाग में श्वेताम्बर माम्य दशवेकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, निशीथ आगमों का समावेश है और सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, बन्दना एवं प्रतिक्रमण का अन्तर्भाग आवश्यक में किया गया है।