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________________ दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५६३ करता है । वीर निर्वाण १६० के लगभग भद्रबाहु के समय पाटलीपुत्र में जो आगम-वाचना हुई उस समय दोनों परम्पराओं का मतभेद उग्र हो गया । इसके पहले आगम के सम्बन्ध में एकता थी, किन्तु दीर्घकाल के दुष्काल में अनेक श्रुतधर मुनि परलोकवासी हो गये । भद्रबाहु की अनुपस्थिति में ग्यारह अंगों का संकलन- आकलन हुआ पर वह सभी को समान रूप से मान्य नहीं हो सका और दोनों ही विचारधाराओं का मतभेद स्पष्ट रूप से सामने आया । वीर निर्वाण सं० ८२७ - ८४० के बीच माथुरी वाचना हुई, उसमें जो श्रुत का रूप निश्चित हुआ वह अचेलक समर्थकों को बिलकुल भी स्वीकार नहीं हुआ । इस तरह आचार और श्रुत के सम्बन्ध में मतभेद उग्र होते गये और वीर निर्वाण की छठी और सातवीं शताब्दी में एक निर्ग्रन्थ शासन दो भागों में विभक्त हो गया । आवश्यकभाष्य', आवश्यकचूर्णि प्रभृति श्वेताम्बर ग्रन्थों में महावीर निर्वाण के ६०९ वर्ष के पश्चात् शिवभूति ने 'रथवीरपुर नगर में बोटिक - दिगम्बर मत की स्थापना की। जबकि आचार्य देवसेन के मन्तव्यानुसार राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के १३६ वर्ष पश्चात् वल्लभी में श्वेताम्बर संघ की संस्थापना हुई। हरिसेन रचित बृहदुकथाकोष, देवसेन रचित दर्शनसार, भट्टारक रत्ननन्दी विरचित भद्रबाहुचरित्र में पृथक-पृथक मान्यताओं का भी उल्लेख है । जो व्यक्ति सम्प्रदायवाद की दृष्टि से चिन्तन करते हैं वे श्वेताम्बर परम्परा से दिगम्बर परम्परा निकली है और दिगम्बर परम्परा से श्वेताम्बर परम्परा निकली है इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं और एक दूसरे को अपने में से निकला हुआ बताते हैं। साथ ही ग्रन्थों के प्रमाण भी प्रस्तुत करते हैं और अपने आपको भगवान महावीर का सच्चा उत्तराधिकारी मानते हैं किन्तु जब मैं समन्वय की दृष्टि से सोचता हूँ तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ये एक दूसरे से निकली हुई शाखाएँ नहीं हैं। एक दिन ये दोनों एक ही शरीर के अंग थे, दोनों ने मिलकर ही जैनशासन की ज्योति को जगमगाया था और किन्हीं कारणों से वे दोनों विभक्त हो गयीं । आवश्यक भाष्य १४५ २ आवश्यकचूर्णि ४२७ ३ बृहत्कथाकोष १३९; मुक्तिप्रबोध ( रतलाम वि० सं० १९८४ )
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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