________________
५६२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा दिगम्बर'
श्वेताम्बर केबली गौतम १२ वर्ष
सुधर्मा २० वर्ष सुधर्मा १२ वर्ष
जम्बू ४४ वर्ष जम्बू ३८ वर्ष
प्रभव ११ वर्ष श्रुतकेवली-विष्णु १४ वर्ष
शय्यंभव २३ वर्ष नन्दिमित्र १६ वर्ष
यशोभद्र ५० वर्ष अपराजित २२ वर्ष
संभूतिविजय वर्ष गोवर्धन १६ वर्ष
भद्रबाहु १४ वर्ष भद्रबाहु २६ वर्ष
१६२ वर्ष
१७० वर्ष तात्पर्य यह है कि जम्बू के पश्चात् कुछ समय तक दोनों परम्पराएँ आचार्यों में भेद मानती हैं और भद्रबाहु के समय पुनः दोनों एक हो जाती हैं। इस भेद, अभेद का मूल, सैद्धान्तिक मतभेद था-यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। उस समय संघ एक था तथापि गण और शाखाएँ अनेक थीं। आचार्य चतुर्दशपूर्वी भी बहुत थे। सम्भवतः प्रभव स्वामी के समय में ही परस्पर में मतभेद के बीज पनपने लगे होंगे।
दशवकालिक सूत्र में आचार्य शय्यंभव ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि वस्त्र रखना परिग्रह नहीं है। संयम और लज्जा के निमित्त वस्त्र रखने को भगवान महावीर ने परिग्रह नहीं कहा है। इस कथन से ऐसा लगता है कि उस समय संघ में आन्तरिक मतभेद प्रारम्भ हो गया था।
आर्य जम्बू के पश्चात् श्वेताम्बर दृष्टि से दस वस्तुएं विछिन्न हो गई। उनमें से एक जिनकल्पिक अवस्था भी है। यह कथन भी परम्परा-भेद को पुष्ट
१ दिगम्बर, धवला पु० १, प्रस्तावना पृ० २६ २ (क) श्वेताम्बर, इण्डियन एण्टी०, भाग ११, सेप्टेम्बर, पृष्ठ २४५-२४६
(ख) वीर निर्वाण संवत् और जैन कालगणना-मुनि कल्याणविजयजी, पृ० १६२ ३ न सो परिम्गहो वुत्तो, नायपुतण ताइणा ।
मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इइ वुत्त महेसिणा ॥ -दशवकालिक ६२० ४ गण-परमोहि-पुलाए, आहारग-खवम उवसमे कप्पे । संजम-तिय केवलि-सिज्झणाए जंबुम्मि बुच्छिन्ना ।।
--विशेषावश्यकभाष्य, गाथा २५६३