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दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण
दिगम्बर-परम्परा की स्थापना कब हुई-यह विज्ञों के लिए अन्वेषणीय है। परम्परा की दृष्टि से वीर निर्वाण की छठी और सातवीं शताब्दी में इसकी स्थापना मानी जाती है । 'श्वेताम्बर' इस शब्द का प्रयोग भी कब प्रारम्भ हुआ यह भी चिन्तनीय प्रश्न है। श्वेताम्बर और दिगम्बर ये दोनों सापेक्ष शब्द हैं । एक का नामकरण होने के पश्चात् ही दूसरे का नामकरण हुआ होगा।
भगवान महावीर के संघ में सचेल और अचेल दोनों प्रकार के श्रमण थे जिसका वर्णन हमें आचारांग में मिलता है । आचारांग में सचेल श्रमण के लिए वस्त्रषणा का विधान है, अचेल श्रमण का भी वर्णन है। उत्तराध्ययन में अचेल और सचेल दोनों अवस्थाओं का चित्रण किया गया है। कल्पसूत्र के अनुसार अचेल मुनि जिनकल्पिक और सचेल मुनि स्थविरकल्पिक नाम से जाने-पहचाने जाते थे।
श्रमण भगवान महावीर, सुधर्मा और जम्बू का इतना तेजस्वी व्यक्तित्व था कि बाह्य आचार में द्विविधता होने पर भी उनके सामने किसी भी प्रकार का भेद नहीं हो सका। इसके पश्चात् आचार्य परम्परा में भेद प्राप्त होता है। दिगम्बर व श्वेताम्बर पट्टावलियों के अनुसार वह भेद इस प्रकार है
१ बाचारांग१-१-८ २ आचारांग २-५ ३ आचारांग १-१-६ ४ उत्तराध्ययन २-१३ ५ कल्पसूत्र ६-२८-६३