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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५५३ टब्बे लिखे । धर्मसिंहजी महाराज के टब्बे मूलस्पर्शी एवं अर्थ को स्पष्ट करने वाले हैं। ये टब्बे साधारण व्यक्तियों के लिए आगमों के अर्थ को समझने के लिए अतीव उपयोगी सिद्ध हुए। पर परिताप है कि अभी तक कोई भी टब्बा प्रकाशित नहीं हुआ। धर्मसिंह मुनि दीर्घकाल तक प्रतीक्षा करते रहे पर जब गुरुजी में कोई परिवर्तन नहीं आया तो उन्होंने पूनः निवेदन किया। यति शिवजी ने अपने शिष्य की परीक्षा लेने हेतु कहा कि अहमदाबाद के उत्तर की ओर दरियाखान नामक जो दर्गाह है वहाँ पर रात्रि भर रहो। वे वहाँ पर रात्रि भर रहे और अपने आध्यात्मिक बल से दरियाखान के यक्ष को प्रतिबोध दिया तथा प्रात: शिवजी यति की अनुमति ग्रहण कर दरियापुर दरवाजे के बाहर ईशान कोण में पुनः शुद्ध आहेत संयम स्वीकार किया। प्रस्तुत घटना वि० सं० १६८५ की है । एक प्राचीन कविता में भी यही भाव व्यक्त किया गया है: संवत सोल पचासिए, अमदाबाद मझार । शिवजी गुरु को छोड़के, धर्मसि हुआ गच्छबहार ।। धर्मसिंह मुनि का विचरण क्षेत्र सौराष्ट्र और गुजरात रहा है। उन्होंने २७ टब्बों के अतिरिक्त समवायाङ्ग की हुन्डी, भगवती का यन्त्र, प्रज्ञापना का यंत्र, स्थानाङ्ग का यंत्र, जीवाभिगम का यन्त्र, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति का यन्त्र, चन्द्रप्रज्ञप्ति का यन्त्र, सूर्यप्रज्ञप्ति का यन्त्र, राजप्रश्नीय का यन्त्र, व्यवहार की हुन्डी, सूत्र समाधि की हुन्डी, द्रौपदी की चर्चा, सामायिक की चर्चा, साधु सामाचारी, चन्द्रप्रज्ञप्ति की टीप प्रभृति ग्रन्थों की रचना की। इनके अतिरिक्त भी उनके रचित ग्रन्थ हैं किन्तु अभी तक कोई भी ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। अनुवाद युग ...टब्बा के पश्चात् अनुवाद युग का प्रारम्भ हुआ। मुख्य रूप से आगम साहित्य का अनुवाद तीन भाषाओं में उपलब्ध होता है-अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी। - अंग्रेजी अनुवाद-जर्मन विद्वान डॉ. हर्मन जेकोबी ने आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र इन चार आगमों का अंग्रजी में
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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