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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
अनुवाद किया । कल्पसूत्र और आचाराङ्ग पर उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अभ्यर ने दशवकालिक का अंग्रेजी अनुवाद किया है। इसके अतिरिक्त उपासकदशाङ्ग, अन्तकृतदशाङ्ग, अनुत्तरोपपातिकदशा, विपाक और निरयावलिका सूत्र के अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुके हैं।
गुजराती अनुवाद-आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् पण्डित बेचरदासजी दोशी ने भगवतीसूत्र, राजप्रश्नीय, ज्ञाताधर्मकथा और उपासकदशाङ्ग सूत्र के अनुवाद प्रकाशित किये हैं। विशेष स्थलों पर महत्त्वपूर्ण टिप्पण भी हैं और प्रारम्भ में भूमिका भी दी गयी है।
जीवाभाई पटेल ने भी अनेक आगम टिप्पण सहित प्रकाशित किये हैं।
पं० दलसुखभाई मालवणिया ने स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग का संयुक्त अनुवाद प्रकाशित किया है। इसमें अनेक स्थलों पर महत्त्वपूर्ण तुलनात्मक दृष्टि से टिप्पण दिये गये हैं जिसमें मालवणिया जी का पांडित्य स्पष्ट रूप से झलक रहा है।
मुनि संतबालजी ने आचाराङ्ग, दशवकालिक और उत्तराध्ययन के अनुवाद प्रकाशित किये हैं । विशेष स्थलों पर टिप्पण भी लिखे गये हैं।
श्री प्रेम जिनागम प्रकाशन समिति घाटकोपर बम्बई से मूल व गुजराती अनुवाद सहित आगम प्रकाशित हुए हैं जिनके मुख्य सम्पादक पण्डित शोभाचन्द्र जी भारिल्ल हैं और श्रमणी विद्यापीठ में अध्ययन करने वाली साध्वियों ने इनका अनुवाद किया है। ये आगम मूल व अर्थ समझने की दृष्टि से जिज्ञासु साधुओं के लिए अतीव उपयोगी हैं। आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, उपासकदशाङ्ग और विपाक ये आगम मुद्रित हो चुके हैं और ३२ आगमों के प्रकाशन की योजना है।
इनके अतिरिक्त मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के विद्वान् मुनिवरों ने कुछ आगमों के सुन्दर अनुवाद भी प्रकाशित किये हैं। आगम प्रभावक पुण्यविजयजी महाराज, दलसुखभाई मालवणिया आदि ने नन्दी, अनुयोगद्वार, प्रज्ञापना आदि मूल आगम प्रकाशित किये हैं। उन पर उन्होंने बहुत ही महत्त्वपूर्ण शोध प्रधान गुजराती व अंग्रेजी में प्रस्तावनाएं विस्तार से लिखी हैं। प्रस्तावनाओं में अनेक महत्त्वपूर्ण रहस्यों का उद्घाटन भी किया गया है । सम्पादन आधुनिक दृष्टि से किया गया है।