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________________ जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन २६ द्वितीय अभिमतानुसार दशवैकालिक गणिपिटक द्वादशांगी से उद्धृत है ।" निशीथ का निर्यूहण प्रत्याख्यान नामक नौवें ! से हुआ है। प्रत्याख्यान पूर्व के बीस वस्तु अर्थात् अर्थाधिकार हैं। तृतीय वस्तु का नाम आचार है। उसके भी बीस प्राभृतच्छेद अर्थात् उपविभाग हैं। बीसवें प्राभृतच्छेद से निशीथ का निर्यूहण किया गया है ।" पंचकल्पचूर्णि के अनुसार निशीथ के निर्यूहक भद्रबाहु स्वामी हैं । 3 इस मत का समर्थन आगम प्रभावक मुनिश्री पुण्यविजयजी ने भी किया है । ४ दशाश्रुतस्कंध बृहत्कल्प और व्यवहार, ये तीनों आगम चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु स्वामी के द्वारा प्रत्याख्यान पूर्व से निर्यूढ़ हैं । * दशाgaria की नियुक्ति के मन्तव्यानुसार वर्तमान में उपलब्ध दशाgतस्कंध अंगप्रविष्ट आगमों में जो दशाएँ प्राप्त हैं उनसे लघु हैं । इनका निर्यूहण शिष्यों के अनुग्रहार्थं स्थविरों ने किया था। चूर्णि के अनु सार स्थविर का नाम भद्रबाहु है ।७ १ बीओोsवि अ आएसो, गणिपिङगाओ दुवालसंगाओ । एअं किर णिज्जूढं मणगस्स अणुग्गहट्टाए || दावेकालिक नियुंकि गा० १० २ पिसीहं णवमा पुग्दा पच्चक्खाणस्स ततियवत्थूओ । आयार नामवेज्जा, वीसतिमा पाहुडच्छेदा ॥ विशोष भाष्य ६५०० ३ तेण भगवता आयारपकष्प-दसा- कप्प-ववहारा य नवमपुब्वनीसंदभूता निज्जूढा - पंचकल्प णि, पत्र १ (लिखित) ४ ५ बृहत्कल्प सूत्र, भाग ६, प्रस्तावना पृ० ३ (क) वंदामि भवाहु, पाईणं चरिय सयल सुयनाणि सुत्तस्स कारगमिसं (पं) दसासुकप्पे य ववहारे । -- वशा तस्कन्ध निर्युक्ति गाथा १, पत्र १ (ख) तत्तोच्चय णिज्जूढं अणुम्मट्ठाए संपयजतीणं सो सुत्तकार तो खलु स भवति aircraवहारे । -पंचकल्प भाव्य गा० ११ ६ हरीओ उ इमाओ अज्झयणेसु महईओ अंगेसु । खसु नायादीएसु वत्यविभूसावसाणमिव || डहरीओ उ इमाओ, निज्जूढाओ अणुग्गहट्टाए । थेरेहि तु दसाओ, जो दसा जाणओ जीवो ॥ ७ दशाgतस्कन्ध चूर्णि । ---वशाध तस्कन्ध नियुक्ति ५२२६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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