________________
२८
जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
चला की रचना-शैली सर्वथा पृथक है। उसकी रचना आचारांग के बाद हुई है। आचारांग-नियुक्तिकार ने उसको स्थविर कृत माना है।' स्थविर का अर्थ चूर्णिकार ने गणधर किया है और वृत्तिकार ने चतुर्दशपूर्वी किया है किन्तु उनमें स्थविर का नाम नहीं आया है। विज्ञों का अभिमत है कि यहाँ पर स्थविर शब्द का प्रयोग चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु के लिए ही हुआ है।
आचारांग के गम्भीर अर्थ को अभिव्यक्त करने के लिए 'आचारचूला' का निर्माण हुआ है। नियुक्तिकार ने पाँचों चूलाओं के नि!हण स्थलों का संकेत किया है।
दशवकालिक चतुर्दशपूर्वी शय्यंभव के द्वारा विभिन्न पूर्वो से निषूहण किया गया है । जैसे-चतुर्थ अध्ययन आत्मप्रवाद पूर्व से, पंचम अध्ययन कर्मप्रवाद पूर्व से, सप्तम अध्ययन सत्यप्रवाद पूर्व से और शेष अध्ययन प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु से उद्धत किये गये हैं।'
१ थेरेहिऽणुग्गहट्ठा, सीसहि होउ पाग उत्थे च । आयाराओ अत्थो, आयारंगेसु पविभत्तो ।
-आचारांग नियुक्ति गा० २८७ २ थेरे गणधरा
--आचारांग चूणि, पृ० ३२६ ३ 'स्थविरैः' श्रुतवृद्धश्चतुर्दशपूर्वविद्भिः ।
-आचारांग वृत्ति २६० ४ बिइअस्स य पंचमए, अट्ठमगस्स बिइयंमि उद्देसे ।
भणिओ पिंडो सिज्जा, बत्थं पाउम्गहो चेव ।। पंचमगस्स चउत्थे इरिया, दणिज्जई समासेणं । छट्ठस्स य पंचमए, भासज्जायं वियाणाहि ॥ सत्तिक्कगाणि सत्तवि, निज्जूढाई महापरिन्नाओ। सत्यपरिन्ला भावण, निज्जूढाओ धुयविमुत्ती ।। आयारपकप्पो पुण, पच्चक्खाणस्स तझ्यवत्थूओ। आयारनामधिज्जा, बीसइमा पाहुडच्छेया ॥
-आचारांग नियुक्ति गा०२८८-२६१ ५ आयप्पवाय पुव्वा निज्जूढा होइ धम्मपन्नत्ती।
कम्मप्पवाय पुव्वा पिंडस्स उ एसणा तिविधा ।। सच्चप्पवाय पुव्वा निज्जूढा होइ वक्क सुद्धीउ । अवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्यूओ ॥
-वशवकालिक नियुक्ति गा० १६-१७