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________________ जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन २७ समवाय प्रज्ञापना भगवती जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्मकथा सूर्यप्रज्ञप्ति उपासकदशा चन्द्रप्रज्ञप्ति अन्तकृतदशा निरयावलिया-कल्पिका अनुत्तरोपपातिकदशा कल्पावतंसिका प्रश्नव्याकरण पुष्पिका विपाक पुष्पचूलिका दृष्टिवाद वृष्णिदशा श्रुतपुरुष की तरह वैदिक वाङमय में भी वेदपुरुष की कल्पना की गई है। उसके अनुसार छन्द पैर हैं, कल्प हाथ हैं, ज्योतिष नेत्र हैं, निरुक्त श्रोत्र हैं, शिक्षा नासिका है और व्याकरण मुख है।' नि!हण आगम जैन आगमों की रचनाएँ दो प्रकार से हुई हैं-(१) कृत, (२) निर्यहण । जिन आगमों का निर्माण स्वतंत्र रूप से हुआ है वे आगम कृत कहलाते हैं। जैसे गणधरों के द्वारा द्वादशांगी की रचना की गई है और भिन्न-भिन्न स्थविरों के द्वारा उपांग साहित्य का निर्माण किया गया है, वे सब कृत आगम हैं। निय॒हण आगम ये माने गये हैं (१) आचारचूला (२) दशवकालिक (३) निशीथ (४) दशाश्रुतस्कन्ध (५) बृहत्कल्प (६) व्यवहार (७) उत्तराध्ययन का परीषह अध्ययन आचारचूला यह चतुर्दश पूर्वी भद्रबाहु के द्वारा निर्यहण की गई है, यह बात आज अन्वेषणा के द्वारा स्पष्ट हो चुकी है। आचारांग से आचार छन्दः पादौ तु वेदस्य, हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते । ज्योतिषामयनं चक्षुः निरुक्तं श्रौतमुच्यते ॥ शिक्षा घ्राणं च वेदस्य, मुखं व्याकरणं स्मृतम् । तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ॥ -पाणिनीय शिक्षा ४१, १२ आगमयुग का जैनदर्शन, पृ० २१-२२, पं० दलसुखभाई मालवणिया -प्रकाशक सम्मति ज्ञानपीठ, आगरा २
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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