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________________ २६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा दीया पैर आचारांग बोया पर सूत्रकृतांग दायीं जंघा स्थानांग बायीं जंघा समवायांग दाँया ऊरु भगवती बाँया अरु ज्ञाताधर्मकथा उदर उपासकदशा पीठ अन्तकृत्दशा दायीं भुजा अनुत्तरोपपातिक बांयीं भुजा प्रश्नव्याकरण ग्रीवा विपाक शिर दृष्टिवाद श्रुतपुरुष की कल्पना आगमों के वर्गीकरण की दृष्टि से एक अतीव सुन्दर कल्पना है। प्राचीन ज्ञान भण्डारों में श्रुतपुरुष के हस्त-रचित अनेक कल्पना-चित्र मिलते हैं। द्वादश उपांगों की रचना होने के पश्चात् श्रुतपुरुष के प्रत्येक अंग के साथ एक-एक उपांग की भी कल्पना की गई है, क्योंकि अंगों में कहे हुए अर्थों का स्पष्ट बोध कराने वाले उपांग सूत्र हैं।' किस अंग का उपांग कौन है, यह इस प्रकार है :अंग उपांग आचारांग औपपातिक सूत्रकृत राजप्रश्नीय स्थानांग जीवाभिगम (ख) इह पुरुषस्य द्वादश अंगानि भवन्ति तद्यथा-द्वी पादौ, द्वे जङ्घ, द्वे उरुणी, द्वे गात्राधे, दो बाहू, ग्रीवा, शिरश्च, एवं श्रुतरूपस्य अपि परमपुरुषस्य आचारादीनि द्वादश अंगानि क्रमेण वेदितव्यानि........श्रुतपुरुषस्य अंगेषु प्रविष्टम् अंगमावेन व्यवस्थितमित्यर्थः । यत् पुनरेतस्यैव द्वादशांगात्मकस्य श्रुतपुरुषस्य व्यतिरेकेण स्थितम् अंगबाह्यत्वेन व्यवस्थितं तद् अनंगप्रविष्टम् । -नन्दीसूत्र मलयगिरि वृत्ति, पृ० २०३ (ग) श्रुतं पुरुषः मुखचरणाद्यंगस्थानीयत्वादंग शब्देनोच्यते । - --मूलाराधना ५RE विजयोदया १ . अंगार्थस्पष्टबोधविधायकानि उपांगानि । ---औपपातिक टीका
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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