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________________ जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन २५ का सर्वाङ्गीण विवेचन छेद-सूत्रों में ही उपलब्ध होता है। साधक की क्या मर्यादा है ? उसका क्या कर्त्तव्य है ? इत्यादि प्रश्नों पर उनमें चिन्तन किया गया है। जीवन में से असंयम के अंश को काटकर पृथक् करना, साधना में से दोषजन्य मलिनता को निकालकर साफ करना, भूलों से बचने के लिए पूर्ण सावधान रहना, भूल हो जाने पर प्रायश्चित्त ग्रहण कर उसका परिमार्जन करना, यह सब छेदसूत्र का कार्य है । समाचारी शतक में समयसुन्दर गणी ने छेदसूत्रों की संख्या छः बतलाई है --- (१) दशाश्रुतस्कंध, (२) व्यवहार, (३) बृहत्कल्प, (४) निशीथ, (५) महानिशीथ, (६) जीतकल्प । जीतकल्प को छोड़कर शेष पांच सूत्रों के नाम नन्दी सूत्र में भी आये हैं। जीतकल्प जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की कृति है, एतदर्थं उसे आगम की कोटि में स्थान नहीं दिया जा सकता। महानिशीथ का जो वर्तमान संस्करण है, वह आचार्य हरिभद्र (वि० ८ वीं शताब्दी) के द्वारा पुनरुद्वार किया हुआ है। उसका मूल संस्करण तो उसके पूर्व ही दीमकों ने उदरस्थ कर लिया था। अतः वर्तमान में उपलब्ध महानिशीथ भी आगम की कोटि में नहीं आता। इस प्रकार मौलिक छेदसूत्र चार ही हैं- (१) दशाश्रुतस्कन्ध, (२) व्यवहार, (३) बृहत्कल्प और ( ४ ) निशीथ । श्रुतपुरुष नन्दीसूत्र की चूणि में श्रुतपुरुष की एक कमनीय कल्पना की गई है।" पुरुष के शरीर में जिस प्रकार बारह अंग होते हैं-दो पैर, दो जंघाएं, दो ऊरु, दो गात्रार्ध ( उदर और पीठ), दो भुजाएँ, गर्दन और सिर, उसी प्रकार श्रुतपुरुष के भी बारह अंग हैं। * १ समाचारी शतक, आगम स्थापनाधिकार । २ कालियं अणेगविहं पण्णत्तं तं जहा दसाओकप्पो, ववहारो, निसीहं, महानिसीहं । -- नन्वी सूत्र ७७ ३ इन्चेतस्स सुतपुरिसस्स जं सुतं अंगभागठितं तं अंगपविट्ठ मणइ । - नम्बीसूत्र चूर्णि, पृ० ४७ ४ (क) पायदुगं जंघा उरू गायदुगढ तु दो य बाहू यं । गीवा सिरं च पुरषो बारस अंगो सुर्याविसिट्ठी ॥ --मम्बीसूत्र वृत्ति, २, ३
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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