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२४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा (१) सामायिक, (२) छेदोपस्थापनीय, (३) परिहारविशुद्धि (४) सूक्ष्मसंपराय. (५) यथाख्यात ।' इनमें से वर्तमान में तीन अन्तिम चारित्र विच्छिन्न हो गये हैं। सामायिक चारित्र स्वल्पकालीन होता है, छेदोपस्थापनिक चारित्र ही जीवन पर्यन्त रहता है। प्रायश्चित्त का सम्बन्ध भी इसी चारित्र से है। संभवत: इसी चारित्र को लक्ष्य में रखकर प्रायश्चित्त सूत्रों को छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो।
मलयगिरि की आवश्यक वृत्ति में छेदसूत्रों के लिए पद-विभाग, समाचारी शब्द का प्रयोग हुआ है। पद-विभाग और छेद ये दोनों शब्द समान अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं। संभवतः इसी दृष्टि से छेदसूत्र नाम रखा गया हो। क्योंकि छेदसूत्रों में एक सूत्र का दूसरे सूत्र से सम्बन्ध नहीं है। सभी सूत्र स्वतंत्र हैं। उनकी व्याख्या भी छेद-दृष्टि से या विभाग-दृष्टि से की जाती है।
दशाश्रुतस्कन्ध, निशीथ, व्यवहार और बृहत्कल्प ये सूत्र नौवें प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत किये गये हैं, उससे छिन्न अर्थात् पृथक् करने से उन्हें छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो, यह भी सम्भव है।
. छेद सूत्रों को उत्तम श्रुत माना गया है। भाष्यकार भी इस कथन का समर्थन करते हैं। चूणिकार जिनदास महत्तर स्वयं यह प्रश्न उपस्थित करते हैं कि छेदसूत्र उत्तम क्यों है ? फिर स्वयं ही उसका समाधान देते हैं कि छेदसूत्र में प्रायश्चित्त विधि का निरूपण है, उससे चारित्र की विशुद्धि होती है, एतदर्थ यह श्रुत उत्तम माना गया है। श्रमण-जीवन की साधना
१ (क) स्थानांग सूत्र ५, उद्देशक २, सूत्र ४२८
(ख) विशेषावश्यक भाष्य गा०१२६०-१२७० २ पद विभाग, समाचारी छेदसूत्राणि ।
-आवश्यक नियुक्ति ६६५, मलयगिरि वृत्ति ३. कतरं सुत्तं ? दसाउकप्पो क्वहारो य । कतरातो उद्धृतं ? उच्यते पच्चक्खाणपुवाओ।
-दशाथ तस्कंषणि, पत्र २ ४ निशीथ १६।१७ छेयसुयमुत्तम सुयं ।
-निशीषभाष्य, ६१४८ छेयसुयं कम्हा उत्तमसुत्तं ? भणति-जम्हा एत्यं सपायच्छित्तो विधी मण्णति, जम्हा ए तेणच्चरणविशुद्ध करेति, तम्हा तं उत्तमसुत्तं ।
-निशीयभाष्य ६१८४ की चूर्णि