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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५४७ गया है। जब दशाश्रुतस्कन्ध छेदसूत्रों में मुख्य है तो उसी का विभाग होने से कल्पसूत्र की मुख्यता भी स्वतःसिद्ध है । दशाश्रुतस्कन्ध का उल्लेख मूलसूत्र उत्तराध्ययन के इकतीसवें अध्ययन में भी हुआ है।
नियुक्ति-चूणि - कल्पसूत्र की सबसे प्राचीन ब्याख्या कल्प-नियुक्ति और कल्पचूर्णि है। नियुक्ति गाथा रूप पद्य में है और चूणि गद्य रूप में है। दोनों की भाषा प्राकृत है। नियुक्ति के रचयिता द्वितीय भद्रबाह हैं। चूणि के रचयिता के सम्बन्ध में अभी कोई निर्णय नहीं हो सका है।
कल्पान्तर्वाच्य नियुक्ति और चूणि के पश्चात् कल्पान्तर्वाच्य प्राप्त होते हैं। ये व्याख्या ग्रन्थ नहीं है अपितु वक्ता कल्पसूत्र का वाचन करते समय प्रवचन को सरस बनाने के लिए अन्यान्य ग्रन्थों से जो नोट्स लेता था उन्हें ही यहाँ कल्पान्तर्वाच्य की संज्ञा दी गई है। जितने कल्पान्तर्वाच्य प्राप्त होते हैं वे सभी एक ही लेखक की प्रतिलिपियां नहीं हैं, अपितु विविध लेखकों ने अपनी-अपनी दृष्टि से उनको तैयार किया है। कुछ लेखक तपागच्छीय, कुछ खरतरगच्छीय और कुछ अंचलगच्छीय रहे हैं। उनमें आयी हई साम्प्रदायिक मान्यताओं के वर्णन से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है। एक कल्पान्तर्वाच्य को श्री सागरानन्द सूरि ने 'कल्प समर्थन' के नाम से प्रसिद्ध कराया है। टीकाएं
जैनाचार्यों ने संस्कृत वाङमय का अत्यधिक प्रचलन देखकर आगमों पर भी संस्कृत भाषा में टीकाएँ लिखीं। कल्पसूत्र की टीकाओं में नियुक्ति
और चूणि के प्रयोग के साथ ही अपनी ओर से भी लेखकों ने बहुत कुछ नयी सामग्री संकलित की है।
सन्देहविषौषधिकल्पपंजिका इस टीका के रचयिता जिनप्रभसूरि हैं। ब्रहट्रिप्पनिका के अभिमतानुसार टीका का रचना काल सं० १३६४ है। श्लोक परिमाण २५०० के
--शा तस्कंषणि, पत्र २॥
१ इमं पुगच्छेयसुतपमुहभूतं । २ पणवीसभावणाहि उद्देसेसु दसाइणं ।
जे भिक्खू जयई निश्चं से न अच्छह मण्डले ॥
-उत्तरा०प०३१, गा०१७