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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
मुनिश्री पुण्यविजयजी के अभिमतानुसार सामाचारी विभाग में "अन्तरा वि से कप्पइ नो से कप्पइ त रयणि उवायणा वित्तए" यह पाठ संभवतः आचार्य कालक के बाद बनाया गया है।
संक्षेप में सार यह है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में अन्य आगमों की तरह कुछ अंश प्रक्षिप्त हुआ है, उसी को देखकर श्री वेबर ने यह धारणा बनायी है कि कल्पसूत्र का मुख्य भाग देवद्धिगणी के द्वारा रचित है । और मुनिश्री अमरविजयजी के शिष्य चतुरविजयजी ने द्वितीय भद्रबाह की रचना मानी है। यह दोनों मान्यताएँ प्रामाणिक नहीं हैं।
___आज अनेकानेक प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि कल्पसूत्र श्रुतकेवली भद्रबाहु की रचना है। जब दशाश्रुतस्कंध भद्रबाहु निर्मित है तो कल्पसूत्र उसी का एक विभाग होने से वह भी भद्रबाहु द्वारा ही निर्मित है।
यहाँ यह स्मरण रखना चाहिये कि श्रुतकेवली भद्रबाहु ने दशाश्रुतस्कंध आदि जो आगम लिखे, वे कल्पना प्रसूत नहीं हैं। उन्होंने दशाश्रुतस्कंध, निशीथ, व्यवहार और बृहत्कल्प ये सभी आगम नौवें पूर्व के प्रत्याख्यान विभाग से उद्धृत किये हैं। पूर्व गणधरकृत हैं तो ये आगम भी पूर्वो से निर्यढ होने के कारण एक दृष्टि से गणधरकृत हो जाते हैं।
दशाश्रुतस्कंध छेदसूत्र में परिगणित होने पर भी प्रायश्चित्त सूत्र नहीं है किन्तु आचारसूत्र है। एतदर्थ आचार्यों ने इसे चरणकरणानुयोग के विभाग में लिया है। छेदसूत्रों में दशाश्रुतस्कंध को मुख्य स्थान दिया
१ कल्पसूत्र प्रस्तावना २ इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द २१, पृ० २१२-२१३ । ३ मंत्राषिराज-चिन्तामणि-जैन स्तोत्र संदोह, प्रस्तावना पृ० १२-१३, प्रकाशक--
साराभाई माणिलाल नवाब, अहमदाबाद सन् १८३६ । ४ (क) बंदामि महबाहुँ पाइणं चरियसयलसुयणाणि । सुत्तस्स कारगमिसि दसासु कप्पे य बबहारे ।।
-वशाच तस्कंधनियुक्ति, गा० १ (ख) तेण भगवता मायारपकप्प दसाकप्प ववहारा य नवमपुवनीसंदभूता निज्जूढा।
-पंचकल्पभाष्य, गा० २३ चुणि ५ कतरं सुत्तं ? दसाउकप्पो ववहारो य । कतरातो उद्धृतं ? उच्यते-पच्चक्खाणपुवाओ।
---वशाथ तस्कंषणि, पत्र २। ६ इहं चरणकरणाणुओगेण अधिकारो। --- दशाथ तस्कंधणि, पत्र २॥