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________________ आगमों का व्यterrere साहित्य *** का वर्णन भी आगम-सम्मत है। स्थविरावली का निरूपण भी कुछ परिवर्तन के साथ नन्दी सूत्र में आया ही है । अतः हमारी दृष्टि से कल्पसूत्र को प्रामाणिक मानने में बाधा नहीं है । पाश्चात्य विचारकों का अभिमत है कि कल्पसूत्र में चौदह स्वप्नों का आलंकारिक वर्णन पीछे से जोड़ा गया है एवं स्थविरावली तथा सामाचारी का कुछ अंश भी बाद में प्रक्षिप्त हुआ है। पं० मुनिश्री पुण्यविजयजी का मन्तव्य है कि उन विचारकों के कथन में अवश्य ही कुछ सत्य तथ्य रहा हुआ है। क्योंकि कल्प-सूत्र की प्राचीनतम प्रति वि० संवत् १२४७ की ताडपत्रीय प्राप्त हुई है। उसमें चौदह स्वप्नों का वर्णन नहीं है । कुछ प्राचीन प्रतियों में स्वप्नों का वर्णन आया भी है तो अति संक्षिप्त रूप से आया है । निर्युक्ति, चूर्णि एवं पृथ्वीचन्द्र टिप्पण आदि में भी स्वप्न सम्बन्धी वर्णन की व्याख्या नहीं है। फिर भी इतना तो निश्चित है कि आज कल्पसूत्र में स्वप्न सम्बन्धी जो आलंकारिक वर्णन है, वह एक हजार वर्ष से कम प्राचीन नहीं है। यह किसके द्वारा निर्मित है, यह अन्वेषणीय है ।" कल्पसूत्र की निर्युक्ति, चूर्णि आदि से यह सिद्ध है कि इन्द्र-आगमन, गर्भ-संक्रमण, अट्टणशाला, जन्म, प्रीतिदान, दीक्षा, केवलज्ञान, वर्षावास, में निर्वाण, अन्तकृतभूमि, आदि का वर्णन उसके निर्माण के समय कल्पसूत्र था और यह भी स्पष्ट है कि जिनचरितावली के साथ उस समय स्थविरावली और सामाचारी विभाग भी था। २ यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि स्थविरावली में देवद्विगणी क्षमाश्रमण तक के जो नाम आये हैं, वे श्रुतकेवली भद्रबाहु के द्वारा वर्णित नहीं हैं अपितु आगम वाचना के समय इसमें संकलित कर दिये गये हैं। १ कल्पसूत्र - प्रस्तावना, पृ० ६ का सारांश पुण्यविजयजी । २ (क) पुरिमचरिमाण कप्पो, मंगलं बद्धमाणतित्थम्मि । इह परिकहिया जिन-गणहराइयेरावलि चरितं, कल्पसूत्रनियुक्ति ६२ (ख) पुरिमचरिमाण य तित्थमराणं एस मग्यो चेव जहा वासावासं पज्जोसवेयव्वं पडतु वा वास मा वा । मज्झिमगाणं पुण भयितं । अवि य बद्धमाणतित्थम्मि मंगलणिमितं जिणगणहर (राइयेरा) बलिया सम्बेसि च जिणाणं समोसरणाणि परिकहिज्जेति । --- कल्पसूत्रण, पृ० १०१ - पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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