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________________ आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५४३ इन टीकाकारों के अतिरिक्त भी अन्य अनेक टीकाकार हुए हैं जिन्होंने टीकाओं का निर्माण किया है। कल्पसूत्र भी जो अत्यधिक लोकप्रिय जैन आगम है उस पर भी अनेक टीकाएं निर्मित हुई हैं। कल्पसूत्र और उसकी टीकाओं का संक्षेप में परिचय निम्न प्रकार है। कल्पसूत्र और उसकी टीकाएं नन्दीसूत्र में आगम साहित्य की विस्तृत सूची प्राप्त होती है । आगम की सभी शाखाओं का निरूपण उसमें किया गया है। सर्वप्रथम आगम को अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य-दो रूपों में विभक्त कर फिर अंगबाह्य और आवश्यकव्यतिरिक्त इन दो भागों में विभक्त किया है। उसके पश्चात् आवश्यकव्यतिरिक्त के भी दो भेद किये हैं-कालिक और उत्कालिक । कालिकसूत्र की सूची में एक कल्प का नाम आया है जो वर्तमान में बृहत्कल्प नाम से जाना-पहचाना जाता है और उत्कालिक श्रुत की सूची में 'चुल्लकल्पश्रुत' और 'महाकल्पश्रुत' इन दो कल्पसूत्रों के नाम आये हैं। मुनिश्री कल्याणविजयजी का मानना है कि महाकल्प का विच्छेद हुए हजार वर्ष से भी अधिक समय हो गया है, और चुल्लकल्पश्रुत को ही आज पर्युषणा कल्पसूत्र कहते हैं। परन्तु इस मत के समर्थन में उन्होंने किसी भी प्राचीन ग्रन्थ का आधार प्रस्तुत नहीं किया है। आगमप्रभावक मुनिश्री पुण्यविजयजी का अभिमत है कि 'महाकल्प और चुल्लकल्प' आगम नन्दीसूत्रकार देववाचकगणी (देवद्धिगणी) क्षमाश्रमण के समय भी नहीं थे। उन्होंने उस समय कुछ यथाश्रुत एवं कुछ यथादृष्ट नामों का संग्रह मात्र किया है, अत: चुल्लकल्पश्रुत को पर्युषणा कल्पसूत्र मानने का मुनिश्री कल्याणविजयजी का अभिमत युक्तियुक्त और आगम सम्मत नहीं है। स्थानाङ्गसूत्र में दशाश्रुतस्कंध का नाम "आयारदसा" (आचारदशा) दिया है। उसके दस अध्ययन हैं और उनमें आठवां अध्ययन पर्युषणा १ प्रबन्ध पारिजात-मुनिश्री कल्याणविजयजी, पृ० १३४ । २ लेखक के नाम लिखे पत्र का संक्षिप्त सारांश, पत्र विक्रम संवत २०२४ वैशाख सुदी ५ शुक्रवार अहमदाबाद से ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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