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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य
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व्याख्याकार ने स्वयं स्वीकार किया है। पर यह वृत्ति महिनों के प्रकार, दिन आदि के सम्बन्ध में विवेचन करने से नीरस हो गई है।
निरयावलिकावृत्ति प्रस्तुत वृत्ति निरयावलिका के पांच उपांगों पर है। निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूला, बृष्णिदशा--इन पांच उपाङ्गों पर इस वत्ति के अतिरिक्त अन्य कोई भी वृत्ति उपलब्ध नहीं है। यह वृत्ति बहुत ही संक्षिप्त शब्दार्थ प्रधान है । वृत्ति के प्रान्त में वृत्तिकार का नाम, उनके गुरु का नाम और उनके वृत्ति लेखन का समय व उनके स्थल आदि का कुछ भी निर्देश नहीं है। वृत्ति का ग्रन्थमान ६०० श्लोक प्रमाण है।
जीतकल्पबृहणिविषमपदव्याख्या प्रस्तुत व्याख्या सिद्धसेनगणी विरचित जीतकल्पबृहणि के विषम पदों के विवेचन की दृष्टि से की गई है। इस व्याख्या में कठिन पदों की व्याख्या करना ही वृत्तिकार का लक्ष्य रहा है । यत्र-तत्र इसमें प्राकृत गाथायें भी उद्धृत की गई हैं। प्रस्तुत व्याख्या वि० सं० १२२७ में भगवान महावीर की जयंती के दिन परिसमाप्त हुई है। इसका ग्रन्थमान ११२० श्लोक प्रमाण है। अन्य टीकायें
समस्त आगम टीकाओं का विस्तृत परिचय देना यहाँ पर सम्भव नहीं है। अब हम प्रमुख टीकाकार और उनके ग्रन्थों का संक्षेप में ही निर्देश कर रहे हैं जिससे कि विज्ञों को परिज्ञात हो सके कि टीका साहित्य कितना विराट है। टीकाकार
ग्रन्थ (१) श्रीतिलकसूरि (१२वीं शताब्दी) आवश्यकसूत्र, जीतकल्पवृत्ति
दशवकालिकवृत्ति। (२) क्षेमकीर्ति
मलयगिरि रचित बृहद्कल्प
की अपूर्ण टीका। (३) भुवनतुङ्गसूरि (महेन्द्र सूरि के चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान
शिष्य थे। वि० सं० १२९४) और संस्तारक पर टीकाएँ। (४) गुणरत्न (वि० सं० १४८४) भक्तपरिज्ञा, संस्तारक, चतु:
शरण, आतुरप्रत्याख्यान प्रकरणों को टीकाएँ।