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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५३७
वृत्तिकार ने इस बात का स्पष्टीकरण किया है कि प्राचीन मेधावी आचार्यों ने चूर्णि व टीकाओं का निर्माण किया है। इनमें उन आचार्यों का प्रकाण्ड पांडित्य झलक रहा है तथापि मैंने मन्दबुद्धि व्यक्तियों के लिए इस पर वृत्ति लिखी है। यह वृत्ति सूत्रों के पदों का सरल व संक्षिप्त अर्थ प्रस्तुत करती है । यत्र-तत्र संस्कृत श्लोक उद्धृत किये गये हैं। वृत्ति का ग्रन्थमान ५६०० श्लोकप्रमाण है किन्तु वृत्ति में रचना के समय का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है ।
विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति
प्रस्तुत वृत्ति का दूसरा नाम 'शिष्यहितावृत्ति' भी है । यह मलधारी आचार्य हेमचन्द्र की बृहत्तम कृति है। आचार्य ने भाष्य में जितने भी विषय आये हैं उन सभी विषयों को बहुत ही सरल व सुगम दृष्टि से समझाने का प्रयास किया है। दार्शनिक चर्चाओं का प्राधान्य होने पर भी शैली में काठिन्य का अभाव है, यही इसकी महान विशेषता है। प्रश्नोत्तरों के माध्यम से विषय को बहुत ही सरल बनाने का प्रयास किया गया है। संस्कृत कथानकों से विषय में सरसता व सरलता आ गई है। यदि यह कह दिया जाय कि प्रस्तुत टीका के कारण विशेषावश्यकभाष्य के पठन-पाठन की सरलता हो गई तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
टीका के प्रारम्भ में वृत्तिकार ने श्रमण भगवान महावीर, सुधर्मा आदि प्रमुख आचार्य वृन्द, अपने गुरु जिनभद्र और श्रुतदेवता को वन्दन किया है । वृत्ति लेखन के उद्देश्य पर चिन्तन करते हुए लिखा है कि सामायिक आदि status श्रुतस्कन्ध रूप आवश्यक की अर्थ की दृष्टि से तीर्थंकरों ने और सूत्र की दृष्टि से गणधरों ने रचनाएँ कीं। इसके गम्भीर रहस्यों के समुद्घाटन के लिए चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु स्वामी ने नियुक्ति की रचना की। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने उस पर महत्त्वपूर्ण भाष्य लिखा । उस भाष्य पर जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने सोपज्ञ वृत्ति लिखी और कोट्याचार्य ने वृत्ति लिखी। वह सारी सामग्री गंभीर और बहुत ही क्लिष्ट है। अतः सुगम रीति से उन महान भावों को समझाने के लिए नई वृत्ति का निर्माण कर रहे हैं।
इस वृत्ति के अन्त में आचार्य ने अपना, अपने गुरु का नाम निर्देश किया है और यह भी बताया है कि राजा जयसिंह के राज्य में सम्वत्