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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
४ हजार ,
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४ गाथा के पश्चात् ही एक गाथा छूट गई है। श्री हेमचन्द्रसूरि ने विशेषावश्यकवृत्ति के अन्त में लिखा "अन्यच्च झटिति विरचय्य तस्याः सद्भावनाममंजूषाया अङ्गभूतं निवेशितं नन्दिटिप्पणकनामधेयं फलकम्"। इससे यह पूर्णरूप से सिद्ध है कि आचार्य ने नन्दिटिप्पणक की रचना अवश्य की थी। जो वर्तमान में नन्दिटिप्पणक प्राप्त होता है वह श्रीचंद्रसूरि रचित है जो आचार्य शीलभद्र व आचार्य धनेश्वर के शिष्य माने जाते हैं। आचार्य हेमचन्द्र की ग्रन्थ रचना का क्रम इस प्रकार है :(१) आवश्यकटिप्पण
५ हजार श्लोक प्रमाण (२) शतकविवरण (३) अनुयोगद्वारवृत्ति
६ हजार ॥ (४) उपदेशमालासूत्र (५) उपदेशमालावृत्ति
१४ हजार, (६) जीवसमासविवरण
७ हजार , (७) भवभावनासूत्र (८) भवभावनाविवरण
१३ हज़ार , (8) नन्दिटिप्पणक . (१०) विशेषावश्यकभाष्य-बृहद्वृत्ति । २८ हजार , .
सभी ग्रन्थ भिन्न-भिन्न विषयों पर होने से उनमें पुनरावृत्तियों का अभाव है।
आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्या .. प्रस्तुत व्याख्या आचार्य हरिभद्र रचित आवश्यकवृत्ति पर है। इसका अपर नाम हारिभद्रीयावश्यकवृत्तिटिप्पणक है। मलधारी आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य हेमचन्द्र सूरि ने इस पर प्रदेश व्याख्या टिप्पण भी लिखा है। प्रारम्भ में चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। उसके पश्चात् आवश्यक वृत्ति के जो कठिन स्थल हैं उन पर सरल व सुगम दृष्टि से विवेचन किया है। प्रस्तुत व्याख्या का ग्रन्थमान ४६०० श्लोक प्रमाण है।
अनुयोगद्वारवृत्ति प्रस्तुत वृत्ति सूत्रस्पर्शी है। सूत्र के गुरुगंभीर रहस्यों को इसमें प्रकट किया गया है। वृत्ति के प्रारम्भ में श्रमण भगवान महावीर को, गणधर गौतम प्रभृति आचार्य वर्ग को एवं श्रुतदेवता को नमस्कार किया गया है।