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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५३५
क्रमश: १४००० और १३००० श्लोकप्रमाण वृत्तियाँ लिखीं। उसके पश्चात् अनुयोगद्वार जीवसमास और बन्धशतक पर क्रमशः ६०००, ७०००, ८००० श्लोकप्रमाण वृत्तियों की रचनाएँ कीं । आचार्य हरिभद्र कृत मूलआवश्यकवृत्ति पर ५००० श्लोक प्रमाण टिप्पण लिखा और विशेषावश्यकभाष्य पर २५००० श्लोक प्रमाण विस्तृत वृत्ति लिखी । जीवन के अन्तिम दिनों में सात दिन की संलेखना कर आयु पूर्ण किया । उनके तीन मुख्य शिष्य थे - विजयसिंह, श्रीचन्द्र और विबुधचन्द्र । उनमें श्रीचन्द्र उनके पट्ट पर अलंकृत हुए ।
आचार्य विजयसिंह ने धर्मोपदेशमाला नामक ग्रन्थ पर एक बृहत् वृत्ति लिखी। उसकी प्रशस्ति में भी उन्होंने अपने सद्गुरुदेव आचार्य हेमचन्द्र का और उनके गुरु आचार्य अभयदेव का परिचय प्रदान किया है।
जीवसमास की वृत्ति की एक प्रति जो स्वयं आचार्य हेमचन्द्र के हाथ की लिखित है उसके उपसंहार में आचार्य ने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि यह वृत्ति यम, नियम, स्वाध्याय, ध्यान, अनुष्ठान में रत परमनैष्ठिक पण्डित श्वेताम्बराचार्य भट्टारक हेमचन्द्र ने वि. सं. ११६४ में लिखी है । "
आचार्य हेमचन्द्र ने कितने ग्रन्थों की रचना की ? इस प्रश्न का समाधान मुनिसुव्रतचरित्र की प्रशस्ति में उपदेशमाला प्रभृति नौ ग्रन्थ बताये हैं । किन्तु विशेषावश्यकभाष्य की वृत्ति के अन्त में आचार्य ने ग्रन्थ रचना का क्रम देते हुए उनकी संख्या दस बताई है जिसमें नन्दिटिप्पणक रचना का विशेष उल्लेख है, जो आज प्राप्त नहीं है। श्री हेमचन्द्रसूरि विरचित सभी ग्रन्थों के नाम और उनका ग्रन्थ प्रमाण मुनिसुव्रतस्वामीचरित्र में प्राप्त होता है किन्तु उसमें नन्दिसूत्र टिप्पणक का नाम नहीं है । आगम प्रभावक मुनि श्री पुण्यविजयजी महाराज ने ऐसी सम्भावना की है कि इस चरित्र की नकल करने के प्रारम्भिक समय में प्राचीनकाल से ही
श्री प्रशस्त संग्रह (श्री शान्तिनाथजी ज्ञान भंडार, अहमदाबाद), पृ० ४६ प्रस्थान ६६२७ । सं० ११६४ चैत्र सुदि ४ सोमेऽद्येह श्रीमदणहिलपाटके समस्त राजावलिविराजित महाराजाधिराज - परमेश्वर श्री मज्जयसिंहदेवकल्याण विजयराज्य एवं काले प्रवर्तमाने यमनियमस्वाध्यायध्यानानुष्ठानरत पर मनैष्ठिकपंडितश्वेताम्बराचार्य मट्टारक श्री हेमचन्द्राचार्येण पुस्तिका लि० श्री० ।