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५३४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा से प्राकृत कथाएं उद्धृत की गई हैं। प्रस्तुत मलयगिरि वृत्ति का ग्रन्थमान ४६०० श्लोक प्रमाण है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य मलयगिरि शास्त्रों के गंभीर ज्ञाता थे। विभिन्न दर्शनशास्त्रों का जैसा और जितना गंभीर विवेचन एवं विश्लेषण उनकी टीकाओं में उपलब्ध है वैसा अन्यत्र कहीं पर भी उपलब्ध नहीं है । वे अपने युग के महान तत्त्वचिन्तक, प्रसिद्ध टीकाकार और महान व्याख्याता थे। आगमों के गुरुगंभीर रहस्यों को तर्कपूर्ण शैली में प्रस्तुत करने की उनकी क्षमता अद्भुत थी, अनूठी थी। मलधारी हेमचन्द्र की वृत्तियाँ
___आचार्य मलधारी हेमचन्द्र महान प्रतिभासम्पन्न और आगमों के समर्थ ज्ञाता थे। मलधारी राजशेखर ने द्वयाश्रय वत्ति की प्रशस्ति में आचार्य मलधारी हेमचन्द्र का परिचय देते हुए लिखा है कि उनका गृहस्थाश्रम में नाम प्रद्युम्न था। वे राजा के मंत्री थे। उन्होंने अपनी चार पत्नियों के प्रेम को त्यागकर मलधारी आचार्य अभयदेव के पास आहती दीक्षा ग्रहण की थी। आचार्य मलधारी हेमचन्द्र के शिष्य आचार्य श्रीचन्द्र ने मुनिसुव्रत चरित्र में लिखा है कि अपने सुमधुर स्वभाव से श्रेष्ठ पुरुषों के अन्तर्मानस को आनन्दित करने वाली कौस्तुभ-मणि के सदृश आचार्य हेमचन्द्र अभयदेव के पश्चात् हुए। वे प्रवचनपटु व वाग्मी थे। 'भगवती-विवाहप्रज्ञप्ति' जैसा विराट् आगम उन्हें अपने नाम के समान कंठस्थ था। उन्होंने मूलग्रन्थ, विशेषावश्यकभाष्य, व्याकरण और प्रमाणशास्त्र प्रभृति विषयों के ५०,००० ग्रन्थ पढ़े थे। सम्राट से लेकर सामान्य जनमानस में जिनशासन की प्रभावना करने में वे परम दक्ष थे। उनका हृदय करुणा से छलकता था। जिस समय वे मेघगंभीर ध्वनि से प्रवचन प्रदान करते तो उपाश्रय से बाहर चलते लोग खड़े रह जाते थे। प्रवचन कला में वे इतने दक्ष थे कि मन्दबुद्धि व्यक्ति भी तात्त्विक विषयों को सहज हृदयंगम कर लेते थे। सर्षिगणी विरचित उपमिति भवप्रपंच कथा अत्यन्त क्लिष्ट थी। जिस पर कोई भी आचार्य प्रवचन करने में संकोच का अनुभव करता था। किन्तु आचार्य हेमचन्द्र जिस समय उस पर प्रवचन करते, जन-जन के अन्तर्मानस में वैराग्य का पयोधि उछाले मारने लगता। उन्होंने तीन वर्ष तक निरन्तर उस पर प्रवचन किये । उन्होंने सर्वप्रथम उपदेशमाला और भवभावना मूल ग्रन्थों की रचनाएँ कीं। उसके पश्चात्