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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य
है। साथ ही प्रज्ञाकर गुप्त, आवश्यक चूर्णिकार, आवश्यकमूलटीकाकार, आवश्यकमूलभाष्यकार, लघीयस्त्रयालंकारकार अकलङ्क, न्यायावतार वृत्तिकार प्रभृति का उल्लेख हुआ है। यत्र-तत्र विषय को स्पष्ट करने के लिए कथाएँ भी उद्धृत की गई हैं। कथाओं की भाषा प्राकृत है। वर्तमान में जो विवरण उपलब्ध है उसमें चतुविशतिस्तव नामक द्वितीय अध्ययन के 'थभं रयणविचित्तं कथं सुमिणम्मि तेण कंजिणो' के विवेचन तक प्राप्त होता है। उसके पश्चात् भगवान अरनाथ के उल्लेख के बाद का विवरण नहीं मिलता है। यह जो विवरण है वह चतुर्विंशतिस्तव नामक द्वितीय अध्ययन तक है और वह भी अपूर्ण है। जो विवरण उपलब्ध है उसका ग्रन्थमान १८००० श्लोक प्रमाण है।
- बृहत्कल्पपीठिकावृत्ति प्रस्तुत वृत्ति भद्रबाहु स्वामी विरचित बृहत्कल्पपीठिकावृत्ति एवं संघदासगणी विरचित लधुभाष्य पर है । आचार्य मलयगिरि पीठिका की भाष्य गाथा ६०६ पर्यन्त ही अपनी वृत्ति लिख सके। आगे उन्होंने वृत्ति नहीं लिखी है । आगे की वृत्ति आचार्य क्षेमकीति ने पूर्ण की है। जैसा कि स्वयं क्षेमकीर्ति ने भी स्वीकार किया है।'
वृत्ति के प्रारम्भ में वृत्तिकार ने जिनेश्वरदेव को प्रणाम कर सद्गुरुदेव का स्मरण किया है, तथा भाष्यकार और चर्णिकार के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त की है। वृत्तिकार ने बृहत्कल्प एवं व्यवहार सूत्र के निर्माताओं के सम्बन्ध में लिखा है कि चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाह स्वामी ने श्रमणों के अनुग्रहार्थ, कल्प और व्यवहार की रचना की जिससे कि प्रायश्चित्त का व्यवच्छेद न हो। उन्होंने सूत्र के गंभीर रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए नियुक्ति की ही रचना की है। और जिनमें प्रतिभा की तेजस्विता का अभाव है उन अल्पबुद्धि वाले व्यक्तियों के लिए भाष्यकार ने भाष्य का निर्माण किया है। वह नियुक्ति और भाष्य सूत्र के मर्म को प्रकट करने वाले होने से दोनों एक ग्रन्थ रूप हो गये। वृत्ति में प्राकृत गाथाओं का उद्धरण के रूप में प्रयोग हुआ है और विषय को सुबोध बनाने की दृष्टि
१ श्रीमलयगिरिप्रभवो, यां कर्तुं मुपाक्रमन्त मतिमन्तः । सा कल्पशास्त्रटीका, मयाऽनुसन्धीयतेऽल्पधिया ।।
-यहस्कल्पपीठिकावृत्ति, पृ० १७७