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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
प्रश्नों से सम्बन्धित है, अतः इसका नाम राजप्रश्नीय है । यह सूत्रकृताङ्ग सूत्र का उपाङ्ग है। इसमें 'देशी नाममाला'" जीवाभिगममूलटीका प्रभृति ग्रन्थों के उद्धरण भी दिये । प्रस्तुत विवरण का ग्रन्थमान ३७०० श्लोक प्रमाण है ।
पिण्डनियुक्तिवृत्ति
यह वृत्ति आचार्य भद्रबाहु रचित पिण्डनियुक्ति पर की गई है। इसमें ४६ भाष्य गाथाओं का भी उपयोग हुआ है और स्वयं वृत्तिकार ने भाष्य गाथाओं का निर्देश किया है। वृत्तिकार ने पिण्डनियुक्ति का सम्बन्ध किस आगम से है इस प्रश्न पर चिन्तन करते हुए बताया है कि दर्शकालिक सूत्र के पिण्डेषणा नामक पाँचवें अध्ययन की नियुक्ति का नाम हो पिण्डनिर्युक्ति है। यह नियुक्ति अत्यधिक विराट् होने के कारण इसे स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में स्थान दिया गया है। यही कारण है कि इस नियुक्ति के प्रारम्भ में मंगलाचरण नहीं किया गया है।
विषय को स्पष्ट करने की दृष्टि से वृत्तिकार ने अपनी वृत्ति में अनेक कथाएँ भी दी हैं जो संस्कृत भाषा में हैं। वृत्ति के अन्त में नियुक्तिकार ने द्वादशांग ज्ञाता भद्रबाहु और पिण्डनिर्युक्ति विषम पद के वृत्तिकार आचार्य हरिभद्र एवं वीरगणी को नमस्कार किया है। अरिहन्त, सिद्ध, साहु और जिन प्ररूपित धर्म की शरण ग्रहण की गई है। वृत्ति का ग्रन्थमान ६७०० श्लोक प्रमाण है ।
आवश्यक विवरण
यह 'विवरण' आवश्यक नियुक्ति पर है किन्तु अभी तक यह पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो सका । इसमें मंगल आदि पर विस्तार से विवेचन और उसकी उपयोगिता पर चिन्तन किया गया है । नियुक्ति की गाथाओं पर सरल एवं सुबोध शैली में विवेचन किया गया है। विवेचन की विशिष्टता यह है कि आचार्य ने विशेषावश्यकभाष्य की गाथाओं पर स्वतन्त्र विवेचन न कर उनका सार अपनी वृत्ति में उट्टङ्कित कर दिया है । वृत्ति में जितनी भी गाथाएँ आई हैं वे वृत्ति के वक्तव्य की पुष्ट करने हेतु हैं । वृत्ति में विशेषावश्यकभाष्य की स्वोपज्ञवृत्ति का भी उल्लेख हुआ
१ पकराः संघाताः पहकर ओरोह संधाया इति देशी नाममाला वचनात् ।
--राजप्रश्नीयवृत्ति, पृ० ३