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________________ ५२६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा (१३) धर्मसंग्रहणी वृत्ति १०००० (१४) कर्मप्रकृतिवृत्ति ८००० (१५) पंचसंग्रहवृत्ति १८८५० (१६) षडशीतिवृत्ति २००० (१७) सप्ततिकावृत्ति ३७८० (१८) बृहत्संग्रहणीवृत्ति (१९) बृहत्क्षेत्रसमास वृत्ति ९५०० (२०) मलयगिरि शब्दानुशासन ५००० जो ग्रंथ वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं उनके नाम इस प्रकार हैंअनुपलब्ध ग्रन्थ (१) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका (२) ओधनियुक्तिटीका (३) विशेषावश्यकटीका (४) तत्त्वार्थाधिगमसूत्रटीका संस्कृत टीकाकारों में आचार्य मलयगिरि का स्थान विशिष्ट रहा है। जैसे वैदिक परम्परा में वाचस्पतिमिश्र ने षट्दर्शनों पर महत्वपूर्ण टीकाएँ लिखकर एक भव्य आदर्श उपस्थित किया वैसे ही जैन साहित्य में आचार्य मलयगिरि ने प्रांजल भाषा और प्रवाहपूर्ण शैली में भावपूर्ण टीकाएँ लिखकर एक नवीन आदर्श उपस्थित किया। वे दर्शनशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। उनमें आगमों के गम्भीर रहस्यों को तर्कपूर्ण शैली से उपस्थित करने की अद्भुत कला और क्षमता थी। आगम प्रभावक पुण्यविजयजी महाराज के शब्दों में कहा जाय तो 'व्याख्याकारों में उनका स्थान सर्वोत्कृष्ट' है। मलयगिरि अपनी वृत्तियों में सर्वप्रथम मूलसूत्र, गाथा या श्लोक के शब्दार्थ की व्याख्या कर उसके अर्थ का स्पष्ट निर्देश करते हैं और उसकी विस्तृत विवेचना करते हैं जिससे उसका अभीष्टार्थ पूर्णरूप से स्पष्ट हो जाता है। विषय से सम्बन्धित अन्य प्रासंगिक विषयों पर विचार करना तथा प्राचीन ग्रन्थों के प्रमाण प्रस्तुत करना आचार्य की अपनी विशेषता है। नन्दीवृत्ति आचार्य मलयगिरि ने नन्दीवत्ति में दार्शनिक विषयों की गहन विचारणाएं की हैं जिससे यह वृत्ति अत्यधिक विस्तृत हो गई हैं। साथ ही संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के उद्धरणों का भी प्रचुरता से प्रयोग किया
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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