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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य
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प्रबन्ध में आचार्य हेमचन्द्र की विद्या उपासना के प्रसंग में आचार्य मलयगिरि के सम्बन्ध में कुछ बातों पर प्रकाश डाला है। इससे यह सहज ही ज्ञात होता है वे गुर्जरेश्वर, चौलुक्य राज्य, जयसिंह देव के सम्माननीय और सम्राट कुमारपाल के धर्मगुरु, कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र के विद्याआराधना के सहचारी थे। आचार्य हेमचन्द्र के प्रति उनके अन्तर्मानस में पूज्य भाव थे। यही कारण है कि उन्होंने अपनी आवश्यकवृत्ति' में आचार्य हेमचन्द्र विरचित द्वात्रिंशिका का उद्धरण देते हुए 'चाहः स्तुतिष गुरुव:' का गौरवपूर्ण उल्लेख किया है । आचार्य मलयगिरि ने अपने लिए आचार्य पद का प्रयोग किया है । ‘एवं कृतमङ्गल रक्षाविधानः परिपूर्णमल्पग्रन्थ लघूपाय आचार्य मलयगिरिः शब्दानुशासनमारभते'। इससे स्पष्ट है कि वे आचार्य थे किन्तु आचार्य हेमचन्द्र से वे व्रत की दृष्टि से लघु होंगे, भले ही वय की दृष्टि से बड़े रहे हों। एतदर्थ ही उन्होंने आचार्य हेमचन्द्र के लिए 'गुरुवः' शब्द का प्रयोग किया है। ... आचार्य मलयगिरि ने कितने ग्रन्थ लिखे इसका स्पष्ट निर्देश तो प्राप्त नहीं होता पर जितने ग्रन्थ वर्तमान में उपलब्ध हैं और उन ग्रन्थों में जिन कृतियों का निर्देश हुआ है वह सूची इस प्रकार हैउपलब्ध ग्रन्थ नाम
श्लोकप्रमाण (१) भगवतीसूत्र-द्वितीयशतकवृत्ति (२) राजप्रश्नीयोपाङ्गटीका (३) जीवाभिगमोपाङ्गटीका (४) प्रज्ञापनोपांगटीका
१६००० (५) चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गटीका
१५०० (६) सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गटीका
६५०० (७) नन्दीसूत्रटीका
७७३२ () व्यवहारसूत्रवृत्ति
३४००० (६) बृहत्कल्पपीठिकावृत्ति (अपूर्ण) ४६०० --, (१०) आवश्यकवृत्ति (अपूर्ण)
१८००० (११) पिण्डनियुक्तिटीका
६७०० (१२) ज्योतिष्करण्डकटीका ... .. ५०००..
३७५०. ... ३७०० ।