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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
है कि देवों और नारकों में जन्म लेने व सिद्धि गमन को उपपात कहते हैं । उपपात सम्बन्धी वर्णन होने से उसका नाम औपपातिक है । वृत्तिकार ने औपपातिक को आचाराङ्ग का उपाङ्ग कहा है ।
वृत्ति में नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विडम्बक, कथक, प्लवक, लासक, आख्यायक प्रभृति अनेक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, सामाजिक एवं प्रशासन विषयक शास्त्रीय शब्दों का गहन अर्थ स्पष्ट किया है। पाठान्तर और मतान्तरों का भी संकेत किया है। वृत्ति के अन्त में वृत्तिकार ने अपने कुल एवं गुरु के नाम का भी निर्देश किया है और यह भी लिखा है कि इस वृत्ति का संशोधन द्रोणाचार्य ने किया है। वृत्ति का ग्रन्थमान ३१२५ श्लोक प्रमाण है ।
इन वृत्तियों के अतिरिक्त प्रज्ञापना, पंचाशकसूत्रवृत्ति, जयतिहुअण स्तोत्र, पंचनिर्ग्रन्थी, षष्ठकर्म ग्रंथसप्तति पर भी इन्होंने भाष्य लिखा है । इस प्रकार इन ग्रन्थों में आचार्य अभयदेव का साहित्यिक जीवन और सांस्कृतिक व्यक्तित्व निखरा है। ६०,००० के लगभग मौलिक श्लोकों का निर्माण कर उन्होंने जो जैन वाङ् मय की अभिवृद्धि की है वह इस वैज्ञानिक युग में भी अनुकरणीय है ।"
- आचार्य मलयगिरि की वृत्तियाँ
आचार्य मलयगिरि उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने आगम ग्रन्थों पर अत्यन्त महत्वपूर्ण टीकाएँ लिखी हैं। उन टीकाओं में उनका प्रकाण्ड पांडित्य स्पष्ट रूप से झलकता है। विषय की गहनता, भाषा की प्रांजलता, शैली की लालित्यता एवं विश्लेषण की स्पष्टता उनकी विशेषताएँ हैं । उनके द्वारा रचित धर्म-संग्रहणी, कर्म प्रकृति, पंचसंग्रह प्रभृति वृत्तियों के अवलोकन से सूर्य के प्रकाश की भाँति स्पष्ट परिज्ञात होता है कि वे जैनागम साहित्य के गंभीर ज्ञाता और पारंगत विद्वान तो थे ही किन्तु गणितशास्त्र, दर्शनशास्त्र और कर्म सिद्धान्त में भी वे निष्णात थे। उन्होंने मलयगिरि शब्दानुशासन नामक व्याकरण की भी रचना की थी। अपनी वृत्तियों में वे इसी व्याकरणसूत्र का उल्लेख करते हैं।
उनकी जन्मस्थली, माता-पिता, गुरु एवं गच्छ आदि के नाम का कोई पता नहीं लगता । १५वीं शताब्दी के जिनमण्डनगणी ने कुमारपाल
. १ विशेष परिचय के लिए देखिए देवेन्द्रमुनि की पुस्तक 'साहित्य और संस्कृति' ।