________________
आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य
५२३
है वह अन्तकृतदशा है। यह सत्य तथ्य है कि अन्तकृतदशा के प्रत्येक वर्ग में दस अध्ययन नहीं हैं तथापि कुछ वर्गों की दस अध्ययन वाली पद्धति के कारण इसका नाम अन्तकृतदशा रखा गया हो। इस वृत्ति का श्लोक प्रमाण ८९६ है ।
अनुत्तरोपपातिकदशावृत्ति
में
प्रस्तुत वृत्ति भी शब्दार्थप्रधान और सूत्रस्पर्शी है । अनुत्तर विमान समुत्पन्न होने वाले अनुत्तरोपातिक कहे जाते हैं। इसमें उनका वर्णन होने से यह अनुत्तरोपपातिक कहलाता है। प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं अत: इसे अनुत्तरोपपातिकदशा कहा गया है। वृत्ति का ग्रंथमान १९२ श्लोक प्रमाण
1
प्रश्नव्याकरणवृत्ति
यह वृत्ति भी शब्दार्थप्रधान है। प्रश्नव्याकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए वृत्तिकार ने बताया है कि जिसमें प्रश्न, अंगुष्ठादि प्रश्न विद्याओं का अभिधान किया गया हो वह प्रश्नव्याकरण है । अथवा जिसमें प्रश्न विद्या विशेषणों का व्याकरण प्रतिपादन करने वाले दस अध्ययन हैं वह प्रश्नव्याकरण है। वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण में पाँच आस्रव व पाँच संवर का ही प्रतिपादन किया गया है। इस पर हम प्रश्नव्याकरणसूत्र के परिचय में चिन्तन कर चुके हैं।
इसका ग्रंथमान ४६०० श्लोक प्रमाण है । वृत्तिकार ने प्रस्तुत आगम को अत्यन्त क्लिष्ट बताया है और इसके संशोधन का श्रेय द्रोणाचार्य को दिया है।
faureवृत्ति
यह वृत्ति भी शब्दार्थप्रधान है। इसमें अनेक पारिभाषिक शब्दों का संक्षेप में संतुलित अर्थ किया गया है। सर्वप्रथम भगवान महावीर को नमस्कार कर बताया है कि विपाक का अर्थ पुण्य पापरूप कर्म का फल है। उसका प्रतिपादन करने वाला श्रुत विपाकसूत्र है। इस वृत्ति का ग्रंथमान ६०० श्लोक प्रमाण है ।
औपपातिक वृत्ति
यह वृत्ति भी शब्दार्थप्रधान है। सर्वप्रथम श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है और औपपातिक का अर्थ करते हुए लिखा गया